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________________ "सेना की उस टुकड़ी को चारों ओर भेज दिया जाए जिसे खोजबीन करने के लिए ही नियुक्त किया है?'' "सो तो भेजा जा चुका है। अब तक आपको यह समाचार नहीं मिला, यह आश्चर्य की बात है। खबर मिलते ही, हमारे निकटवर्ती लोगों ने यह सलाह दी और सेना की एक टुकड़ी तुरन्त भेज दी गयी। परन्तु अब कुछ सावधानी के साथ विचार करने पर हमें ऐसा लग रहा है कि यों लोगों को बेहिसाब भेजने से लाभ के बदले हानि ही ज्यादा हो सकती है। मगर अब तो जिन्हें भेज दिया गया है उन्हें वापस बुलाया नहीं जा सकता। उसे रहने दें। अब क्या करें?" "किस प्रसंग में, प्रभु?" "उनके गायब होने का कारण जानने के लिए।" "मैं अकेला कैसे क्या जान सकता हूँ? अन्य सेनानायकों, नायकों, पटवारियों और अश्वसेना के नायकों को बुलवाकर विचार-विनिमय करना उचित है।" "वह भी ठीक है। देखें, दण्डनायकजी को आने दीजिए। जैसा वे कहेंगे वैसा करेंगे।" एरेयंग ने कहा। "सन्निधान क्या कहते हैं?" बल्लवेग्गड़े ने पूछ।। "उन्हें दुःख और क्रोध दोनों हैं। अब वे किसी पर विश्वास करने की स्थिति में नहीं हैं। अब हमें ही आपस में मिलकर विचार-विनिमय करके पता लगाना होगा; और यदि कोई अनहोनी बात हुई हो तो वह किसके द्वारा हुई है इसकी जानकारी प्राप्त करनी होगी। इन्हीं लोगों को उनके सामने खड़ा कर उन्हीं के मुंह से निर्णय प्राप्त करना होगा कि इस सम्बन्ध में क्या कार्रवाई की जाए। तब तक हम सनिधान के सामने कुछ नहीं कह सकेंगे। कर्नाटक महासाम्राज्य के इस अभेद्य सेना शिविर से रातों-रात बड़ी रानी अदृश्य हो गयी हों तो ऐसी सेना का रहना और न रहना दोनों बराबर है। महासन्निधान यही कहेंगे। उनका दु:ख और क्रोध से जलता हुआ मुंह देखा न जा सकेगा।" दण्डनायक राविनभट्ट के आते ही एऐयंग ने बात बन्द कर दी और उठकर कहा, "आइए अमात्य, हम खुद ही आना चाहते थे; परन्तु यहाँ विचार-विनिमय करते रहने के कारण आपको कष्ट देना पड़ा।" "नहीं प्रभो, आना तो मुझे चाहिए; आपको नहीं। यह खबर मिलते ही वास्तव में किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया और खुद सन्निधान का दर्शन करने गया। यह मालूम होने पर कि दर्शन किसी को नहीं मिलेगा, तब आपके दर्शन के लिए निकला ही था कि इतने में आदेश मिला।" राविनभट्ट ने कहा। "बैठिए,'' कहते हुए स्वयं एरेयंग भी बैठे। शेष लोग भी बैठे। फिर विचारविनिपय आरम्भ हुआ। पट्टमहदेवी शान्तला :: [49
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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