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________________ "यदि हम ऐसे न होते तो हमें यह अश्वनायक का पद ही कौन देता, प्रभु? हम शपथ लेकर चालुक्य राजवंशियों के सेवातात्पर निष्ठावान् सेवक बने हैं।" "तुम जैसे निष्ठावान् सेवकों को पानेवाले चालुक्य राजवंशियों का भाग्य बहुत हो सराहनीय है।" दोनों खुशी से फूले न समाये। पोय्सल वंशीय राजा हम लोगों के बारे में इतनी आजी जानकारी पलते हैं और साकीनों करते हैं, यह उनकी खुशी का कारण था। प्रशंसा सुनकर उन लोगों ने सोचा कि उनकी सेना में उन्हें और ज्यादा ऊंचे पद की प्राप्ति होगी। उस कल्पना से मन-ही-मन लड्डू फूटने लगे। "तुम लोगों को बुलाया क्यों गया है, जानते हो?" "नहीं प्रभु! आज्ञा हुई. आये।" उन्होंने कहा। "बड़ी रानी चन्दलदेवीजी लापता हैं, मालूम है?" एरेयंग ने प्रश्न किया। "समूचे सैनिक शिविर में यही शोरगुल है।'' तिक्कप ने कहा। "यह खाली शोरशराबा नहीं। यह सपाचार सच है।'' एरेयंग ने स्पष्ट किया। "यह तो बड़े आश्चर्य की बात है।" जोगम ने कहा। "नहीं तो क्या? आप जैसे विश्वस्त सेनानायकों के रहते, उसी सेना के शिविर में से बड़ी रानीजी गायब हो जाएं तो इससे बढ़कर आश्चर्य की बात क्या होगी?" गांक के साथ आये बल्लवेग्गड़े ने झुककर प्रणाम किया और कहा, "प्रभु ने कहला भेजा था, आया। अब तक प्रभु को प्रत्यक्ष देखने का मौका नहीं मिला था। आज्ञा हो, क्या आदेश है।" उसने खुले दिल से कहा। "वैठिए, महानायकजी; तुम लोग भी बैठो।" एरेयंग ने आदेश दिया। महानायक बैठे। उन दोनों ने आगे-पीछे देखा। "तुम लोग इस समय हमारे बराबर के हो क्योंकि हम यहाँ विचार-विनिमय करने बैठे हैं इसलिए आप बिना संकोच के बैठिए।" एरेयंग ने आश्वासन दिया। दोनों ने बल्लवेग्गडे की ओर देखा। उसने सम्मति दी। वे बैठ गये। एरेयंग ने गोंक को आदेश दिया, “चालुक्य दण्डनायक राविनभट्ट से हमारी तरफ से कहो कि सुविधा हो तो यहाँ पधारने की कृपा करें।" प्रभु का आदेश पाकर गोंक दण्डनायक राविन भट्ट को बुलाने चला गया। "महानायक, बड़ी रानीजी के यों अदृश्य हो जाने का क्या कारण हो सकता है?" प्रभु ऐयंग ने पूछा। बल्लवेग्गड़े ने कहा, "मेरी अल्प मति समझ नहीं पा रही है, यह कैसे हो सका। सुबह उठते-उठते यह बुरी खबर सुनकर बहुत परेशानी हो रही है। किसी काम में मन नहीं लग रहा है।" "ऐसा होना तो सहज है। परन्तु हम हाथ समेटे बैते रहे तो आगे क्या होगा?'' |..s .: पट्टमहादवी शान्तालः
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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