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पदवी नहीं, चामवाजी । है या नहीं, आप ही बताइए?"
"युवरानीजी के सामने मैं क्या चीज हूँ? जब कहती हैं तो ठीक ही होना चाहिए।"
__“जो ठीक है वह चाहे कोई भी कहे, ठीक ही होगा। युवरानी ने कहा इसलिए वह ठीक है ऐसी बात नहीं। खैर, छोड़िए इस बात को। इस बात की जिज्ञासा हमें क्यों? दण्डनायकजी कुशल हैं न? आपकी बेटियां पद्मला, चामला और बोप्पदेवीसब ठीक तो हैं न? देकब्बे के बजे माचण, डाकरस...आपके बड़े भाई के घर परसब सानन्द हैं न? और उनके पुत्र एचम और बोप्पदेव...कैसे हैं सब?"
"राजमहल के आश्रय में सब स्वस्थ- सानन्द हैं । महाराजा ने हमारे लिए किस बात की कमी कर रखी है? उनकी उदारता से आनन्दमंगल है।"
"हमारा अप्पाजी कभी-कभी आप लोगों से मिलता रहता होगा 1 पहली बार है जब यह माँ-बाप से दूर रहा है। फिर भी वह छोटा बच्चा तो नहीं है। इस नये वातावरण के साथ घुलमिल गया होगा। उसकी अब ऐसी ही उम्र है।"
"आप बड़ी ही भाग्यवान् हैं, युवरामीजी। राजकुमार बडे ही अक्लमन्द हैं। बहुत तेज बुद्धि है उनकी। यह हमारे पूर्वजन्म के पुण्य का फल है। वे जितना प्रेम - आदर आपके प्रति रखते हैं, अपने भी प्रति वैसा ही पाया।"
"मतलब यह कि माँ बाप से दूर रहने पर भी ऐसी भावना उसके मन में बराबर बनी रहे. इस जतन से आप उसकी देखभाल कर रही हैं। माँ होकर मैं इस कृपा के लिए कृतज्ञ हूँ।"
"न न, इतनी बड़ी बात, न न । यह तो हमारा कर्तव्य है। अन्दर पधारिएगा।" "आपके बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं।..कहाँ हैं?"
"वे नाच-गाना सीख रही हैं। यह उनके अभ्यास का समय है।" चामव्वा ने कुछ गर्व से कहा।
__ चामध्वा ने सोचा था कि युबरानीजी इस बात को आगे बढ़ाएंगी। परन्तु युवरानी 'ठीक है' कहकर अन्दर को ओर चल दी।
___ चामव्वा को बड़ी निराशा हुई। अपने बच्चों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बखान करने का एक अच्छा मौका उसे मिला था। अपनी भावना को प्रदर्शित किये बिना उसने भी युवरानी का अनुसरण किया।
अन्तःपुर के द्वार पर युवरानीजी जाकर खड़ी हो गर्या । बोली, "दण्डनायिकाजी. आपने बहुत परिश्रप किया। वास्तव में हम अपने घर आये तो इतना स्वागत करने की भला जरूरत ही क्या थी? हम अपने घर आएँ और अपने ही घर में स्वागत कराएँ तो इस स्वागत का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। परन्तु प्रेम से आपने जब स्वागत किया तो उसे हमें भी प्रेम से स्वीकारना चाहिए। अब आप हमारी चिन्ता छोड़ अपना काम
| 18 :: पट्टमहात्री शान्तला