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________________ में पहले पहल अंकुरित हुई थी। प्रधानमन्त्री और दण्डनायक के जरिये महाराजा के कानों तक बात पहुंचाने की योजना उसी की थी, उसी कारण महाराजा ने यह आदेश दिया। जब युवरानी पुत्रों के साथ आयी हैं तो चामका भला चुपचाप कैसे रह सकती थी। जिसे देखने से असन्तोष होता हो, मन खिन्न होता हो, दोरसमुद्र में आते ही सबसे पहले उसी से भेंट हो गयी। युवरानी एचलदेवी ने अपनी खिन्नता प्रकट नहीं होने दी। "महावीर स्वामी की दया से और देवी वासन्तिका की कृपा से, युवरानोजी ने दोरसमुद्र में पदार्पण तो किया।" चामड्या ने कहा। "ऐसी साधारण और छोटी-छोटी बातों में महावीर स्वामी या वासन्तिका देवी हस्तक्षेप नहीं करते, चामव्याजी। भयग्रस्त व्यक्ति कुछ-की-कुछ कल्पना कर लेते हैं और भगवान् को कृपा का आश्रय लेकर युक्ति से काम बना लेते हैं।" कहती हुई एचनदेवी ने एक अन्दाज से चामन्चा की ओर देखा। चापळ्या के दिल में एक चुभन-सी हुई। फिर भी वह बोली, "इसमें युक्ति की क्या बात है? आप यहाँ आयर्थी मानो अँधेरे घर में रोशनी ही आ गयीं । जहाँ अंधेरा हो वहाँ रोशनो के आने की आशा करना तो कोई गलत नहीं युवरानीजी?" "जहाँ अँधेरा हो वहाँ प्रकाश लाने की इच्छा करना अच्छा है। परन्तु अंधेरे का परिचय जब तक न हो तब तक प्रकाश के लिए स्थान कहाँ? आप और प्रधानमन्त्रीजी की धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवीजी जब यहां हैं तो अँधेरा कैसा?" "हमारी आपकी क्या बराबरी? आज आप युवराती हैं और कल महारानी होगी। पोय्सल वंश की बड़ी सुमंगली।" "तो पदवी की उन्नति होने के साथ-साथ प्रकाश भी बढ़ता है...यही न?" "हाँ...बत्ती बढ़ाने चलें तो प्रकाश बढ़ता ही है।" "प्रकाश तेल से बढ़ता है या बत्ती से?" "बत्ती से, जिसमें लौ होती है।" "खालो बत्तो से प्रकाश मिलेगा?" "नहीं।" "मतलब यह हुआ कि तेल के होने पर ही बत्ती की लौ को प्रकाश देने की शक्ति आती है। तेल खतम हुआ तो प्रकाश भी ख़तम । तात्पर्य यह कि बत्ती केबल साधन मात्र है। बत्ती को लम्बा बनावें तो वह प्रकाश देने के बदले खुद जलकर खाक हो जाती है। तेल, बत्ती और लौ-तीनों के मिलने से ही प्रकाश मिलता है। तेल मिट्टी की ढिबरी में हो या लोहे की, उसका गुण बदलता नहीं। हमारे लिए प्रकाश मुख्य है। तेल की ढिबरी नहीं। इसी तरह से हमारे घर को हमारा सुहाग प्रकाश देता है, हमारी पट्टमहादेवी शान्तला :: 137
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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