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________________ "बाकी लोगों की तो बात हम नहीं कह सकते। हम याने उन्नत कन्नड़ संस्कृति को अपनाकर उसी में पले पोय्सलवंशी ।" "तो क्या चालुक्यवंशीयों में वह कन्नड़ संस्कृति नहीं है- यह आपका अभिमत $7" "न न, ऐसा कहीं हो सकता है ? इस उन्नत संस्कृति की स्थापना का स्वर्णयुग चालुक्यों ने ही करुनाडु में आरम्भ किया, उन्होंने ही इसे संस्कृति की स्वर्ण- भूमि बनी। इसमें अंकुरित हुआ है। " F4 'ऐसी दशा में हम आपको विरुद प्रदान करें तो हमारा खो क्या जाएगा। विरुद पाकर आए पाएँगे ही क्या ?" " देना ही हमारी संस्कृति की रीति है। उसके लिए हाथ पसारकर कार्य में प्रवृत्त होना उस संस्कृति के योग्य कभी नहीं हो सकता। इसलिए अब इस बात को छोड़ दें। पहले हमें जो कार्य करना है उसमें प्रवृत्त हो जाएँ।" "ठीक है, एरेयंग प्रभु ! वही कीजिए।" C 'आज्ञा हो तो मैं विदा लेता हूँ।" कहते हुए एरेयंग प्रभु उठ खड़े हुए। विक्रमादित्य भी उठे और उनके कन्धे पर हाथ रखकर बोले, "अब हम निश्चिन्त हुए।" बालक-1 दीरसमुद्र से महाराजा की आज्ञा आयी। इस वजह से युवरानी एचलदेवी और दोनों - विद्विदेव और उदयादित्य को दोरसमुद्र जाना पड़ा। गुप्तचरों द्वारा प्राप्त समाचार के अनुसार युद्ध जल्दी समाप्त न होनेवाला था। युद्ध समाप्त होने के लिए सम्भव है महीनों या वर्षों लग जाएँ। यह सोचकर महाराज ने युवरानी और बच्चों को सोल में रखना उचित न समझकर उन्हें दोरसमुद्र में अपने साथ रहने के लिए बुलवाया था। रचलदेवी को वहाँ जाने की जरा भी इच्छा नहीं थी । यदि चामत्वे दोरसमुद्र में न होती तो शायद खुशी से एचलदेवी वहाँ जाने को तैयार भी हो जाती । या उसके पतिदेव के युद्ध के लिए प्रस्थान करते ही स्वयं महाराजा को सूचना देकर अपनी ही इच्छा से शायद जाने को तैयार हो जाती। जो भी हो, अब तो असन्तोष से ही दोरसमुद्र जाना पड़ा। युवरानी और दोनों राजकुमारों-बिट्टिदेव और उदयादि के साथ दोरसमुद्र में आने के समाचार की जानकारी चामध्ये को हुए बिना कैसे रह जाती ? जानकारी क्या, इन लोगों को दोरसमुद्र में बुलाने की बात उसी के मन 136 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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