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________________ कहा। "महाराजा का आशीर्वाद मिलेगा। युवराज को भी सम्मति है। इसी एक विश्वास से अपेक्षित को पाने में चाहे समय जितना भी लगे, मैं निश्चिन्त रह सकूँगी।" "तो कल प्रस्थान करने में कोई अड़चन न होगी न!" "नहीं, मुझसे इसके लिए कभी अड़चन न होगी। परन्तु इस युद्ध का कारण क्या है कुछ मालूम हुआ? यदि कह सकते हों तो कहें।" "विक्रमादित्य ने अपना शक जो आरम्भ किया वह परमारों के लिए द्रोह का कारण बना है।" "विक्रमी शक का आरम्भ हुए अब तक सोलह साल पूरे हो गये। सत्रहवाँ शुरू हुआ है। इतने साल बीतने पर भी अभी वह द्रोह की आग बुझो नहीं?" "द्रोह अब सोलह वर्ष का युवा है । यौवन में गर्मी चढ़ती है। इसके साथ यह भी कि सिलहार राजपुत्री चन्दलदेवी ने विक्रमादित्य चक्रवर्ती के गले में स्वयंवर-माला पहना दी। इस घटना ने अनेक राजाओं में द्रोह पैदा कर दिया है। उस समय परमार भोजराज को भी जलन रही आयी। वे स्वयंवर में भी हारे । उस अनिन्द्य सुन्दरी ने इन राजाओं के समक्ष इनके परम शत्रु के गले में माला पहनायी तो उनके दिलों में कैसा क्या हुआ होगा? परमार को इस विद्वेषाग्नि को भड़काने में कश्मीर के राजा हर्ष ने. जो स्वयं इस सुन्दरी को पाने में असफल रहा, भी शायद मदद दी हो। इन सबके कारण भयंकर युद्ध होना सम्भव है।" "स्वयंवर-विधि तो इसलिए बनी है जिससे कन्या को उसकी इच्छा और भावनाओं को उचित गौरव के साथ उपयुक्त स्थान प्राप्त हो । तो यह स्वयंवर विधान क्या सिर्फ नाटक है? "किसने ऐसा कहा?11 "हमारे इन राजाओं के बरताव ने। स्वयंवर के कारण एक राग्य दूसरे राज्य से लड़ने को उद्यत हो जाए तो इसका मतलब यह तो नहीं कि स्वयंवर पद्धति को ही व्यर्थ कहने लगें।" "पद्धति की रोति, उसके आचरण का चाहे जो भी परिणाम हो; स्त्री, धन और जमीन-इसके लिए लड़ाइयाँ हमेशा से होती रही हैं। होती ही रहेंगी। खुद सिरजनहार भी इसे नहीं रोक सके। सीता के कारण रामायण, द्रौपदी की वजह से महाभारत के युद्ध हुए। यो स्त्री के लिए लड़कर मर मिटना मानव समाज के लिए कलंक है। ये घटनाएँ जोर देकर इस बात की साक्षी दे रही हैं। जानते हुए भी हम बार-बार वही करते हैं। यह छूटता ही नहीं। हमारे लिए अब यही एक सन्तोष की बात है कि आत्मसमर्पण करनेवाली एक स्त्री की स्वतन्त्रता की रक्षा करने जा रहे हैं।" "ऐसी हालत में खुद स्त्री होकर नाहीं कैसे कर सकती हूँ। फिर भी एक स्त्री पट्टमहादेवी शान्तला :: 125
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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