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को लेकर इन पुरुषों में जो झगड़े होते हैं वे खतम होने हो चाहिए। हाँ, तो कल प्रस्थान किस वक्त होगा?1
__"यह अभी निश्चित नहीं किया है। गुरुवर्य गोपनन्दी जो समय निश्चित करेंगे, उसी समय रवाना होंगे। यहाँ के रक्षा कार्य में चिण्णम दण्डनाथ रहेंगे। महामात्य मानवेग्गड़े कुन्दमराय, हमारे साथ चलेंगे।"
"इस बात को महाराजा के समक्ष निटन कर उनकी मम्मलिल्ले जी गयी है?"
"नहीं, अब इसके लिए समय ही कहाँ है ! विस्तार के साथ सारी बात लिखकर पत्र द्वारा उनसे विनती कर लेंगे।"
"उनको सम्मति मिलने के बाद ही प्रस्थान करते तो अच्छा होता। प्रस्थान के पहले बड़ों का आशीर्वाद भी तो लेना उचित होता है।"
"मतलब यह कि हम खुद जाएँ, महाराजा को सारी बात समझाएँ और उनसे स्त्रीकृति लें एवं आशीर्वाद पाएँ: इसके बाद यहाँ लौटकर आ जाएँ-तभी यहाँ हमारी वीरोचित विदाई होगी, अन्यथा नहीं; यही न? ठीक है, वहीं करेंगे। शायद इसीलिए कहा है-स्त्री कार्येषु मन्त्री।" यह कहकर उन्होंने घण्टी बजायो।
रेविमय्या अन्दर आया।
"रेविमय्या, शीघ्र ही हमारी यात्रा के लिए एक अच्छा घोड़ा तैयार किया जाय । साथ में...न.,.न...कोई भी नहीं चाहिए। चलो, जाओ।"
रेविमय्या वहाँ से चला गया। "साथ एक रक्षकदल नहीं चाहिए?".
"हमें वेष बदलकर हो आना होगा। इसलिए रेविमय्या को साथ लेता जाऊँगा। वह भी वेष बदलकर ही साथ आएगा।"
दोरसमुद्र पहुँचकर वहाँ महाराजा विनयादित्य के सामने सबकुछ निवेदन कर उनकी स्वीकृति और आशीर्वाद के साथ युवराज एरेयंग प्रभु ने गुरु गोपनन्दी द्वारा निश्चित मुहूर्त पर प्रस्थान किया।
दोरसमुद्र के लिए रवाना होने के पहले ही विश्वासपात्र गुप्तचरों द्वारा आवश्यक सूचना धारानगरी भेज दी गयी थी। दो प्रमुख गुप्तचरों को पत्र देकर बलिपुर और कल्याण भी भेज दिया था।
बलिपुर के हेग्गड़े मारसिंगय्या ने बनवासी प्रान्त के ख्यात युद्धवीरों का एक जत्था प्रति:काल के पूर्व ही तैयार कर रखा था। इस सैन्य-समूह की निगरानी के लिए
126 :: पट्टमहादेवी शान्तला