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________________ के लिए यह सारा नाटक रचा जा रहा है।" एचलदेवी हँस पड़ी। 14 'हँसती क्यों हो?" " बात कुछ अटपटी लगी। कहावत है, 'अफारा गाय को, दाग दिया बैल को । इसलिए हँसी आ गयी । " " राजनीति तो ऐसी ही होती है। " + 'होती होगी ? फिर भी मुझे, इसका सिर-पैर क्या है-सो तो मालूम नहीं पड़ा।" "ठोक ही तो है। दीये तले अंधेरा अपने ही पाँव तले जो होता रहा, वह दिखायी नहीं दिया । " 44 'क्या सब हुआ ?" " एक साधारण हेग्गड़ती को जितना गौरव मिलना चाहिए उससे कहीं सौ गुना अधिक गौरव पा जाने से राजघराने से मिल सकनेवाले समस्त गौरव को मात्र अपने ही लिए माननेवालों के मन में असहिष्णुता और सन्देह के लिए युवरानी ने मौका ही क्यों दिया ?" "किसी को कुछ विशेषग्य दिशा तो कुलों के मन में असहिष्णुता और सन्देह क्यों ?" "हमसे पूछने से क्या लाभ? प्रधानमन्त्रीजी की बहन आपकी समधिन बनना चाहती है। आपकी ओर से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला, सुनते हैं। " "तो क्या चामव्वा की राय में हमें जैसी बहू चाहिए वैसी चुनने की स्वतन्त्रता भी नहीं और हमारे बेटे को अपनी जीवनसंगिनी बनने योग्य कन्या को चुनने की आजादी भी नहीं! ऐसी है उसकी भावना ? मेरी स्वीकृति से ही तो वह समधिन बन सकेगी ?" "उसने तुम्हारे स्वातन्त्र्य के बारे में सवाल नहीं उठाया। बल्कि खुद को निराश होना पड़ा, उसकी यह प्रतिक्रिया है, अपने प्रभाव और शक्ति को प्रकारान्तर से दिखाकर हममें भय उत्पन्न करने की सूत्रधारिणी बनी है, वह दण्डनायकनी !" "तो क्या हमें डरकर उसकी इच्छा के आगे समर्पित होना होगा ?" " 'आप झुकें या न झुकें, वह तो अपना काम आगे बढ़ाएगी ही।" "यदि हम यह कह दें कि हम यह रिश्ता नहीं चाहते, तब क्या कर सकेगी ?" " इतनी आसानी से ऐसा कह नहीं सकते। इस सवाल पर अनेक पहलुओं से विचार करना होगा। माता-पिता होने पर भी सबसे पहले हमें कुमार की राय जानती होगी।" 11 'तब तो काम बिगड़ गया समझो! आप अब कृपा करके तुरन्त अप्पाजी को दोरसमुद्र से वापस बुला लें ।" पट्टमहादेवी शान्तला :: 123
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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