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कौन हैं?"
"दण्डनायकजी को यह सब पसन्द नहीं। इसलिए गुरु नहीं।" "तो फिर तुमने सीखा कैसे?" "किसी-किसी को गाते सुनकर सीखा है; पता नहीं कितनी गलतियां हैं !"
"मुझे क्या मालूम? तुमने गाया। मैंने सुना; अच्छा लगा। एक गाना और गाओगी?"
"हाँ"-चामला ने गाना शुरू किया।
कुमार बल्लाल वैसे ही लेट गया। भोजन गरिष्ठ था। एक, दो, तीन गाने गा चुकी। समय सरकता गया। कुमार बल्लाल को नींद आ गयी। चामव्वा भावी जापाता को देख जाने के इरादे से उधर आयी तो देखा वहाँ चामला है । तब पाला कहाँ गयी? यहाँ न रहकर क्यों चली गयी? क्या हुआ? दरवाजे पर लटके परदे की आड़ में से गाने की ध्वनि सुनकर धीरे से परदा हाटकर झाँका और बात समझ गयी। चामय्या समझ गयी कि राजकुमार सन्तुष्ट हैं। उसका अभीष्ट भी यही था।
उसके उधर आने की खबर किसी को न हो, इस दृष्टि से चामन्चा चली गयी।
एक गाना समाप्त होने पर दूसरा गाने के लिए कहनेवाले राजकुमार ने तीसरा गाना पूरा होने पर जब कुछ नहीं कहा, तो चामला ने पलंग की ओर देखा। वह इसकी ओर पीठ करके सोया हुआ था। चामला चुपचाप पलंग के चारों ओर चक्कर लगा आयी। उसने देखा कि राजकुमार निद्रामग्न हैं। वह भागी और अपनी बड़ी बहन पराला को खबर दी।
"ओह, मैं तो भूल ही गयी थी। तुम्हास गाना सुनते-सुनते बोप्पी सो जाती है। राजकुमार तुम्हारे गाने को सुन खुश हो गये, लगता है।"
"तुम ही उनसे पूछकर देख्न लो।" "न न, मैं तो उनसे कुछ नहीं पूछूगी।" "क्यों?" "यह सब तुम्हें क्यों? जाओ।"
"तुम न कहो तो क्या मुझे मालूम नहीं होगा? संकोच और लज्जा है न? क्योंकि आगे पति होनेवाले हैं ? इसीलिए न?"
"है, नहीं, देखो। फिर..." "क्या करोगी? महारानी हो जाने पर क्या हमें सूली पर चढ़वा दोगी?" "अभी क्यों कहूँ!"
"देखा न! मुँह से बात कैसे निकली, महारानी बनेगी।" कहती हुई खुशी से ताली बजाती हुई भाग गयी।
"ठहर, मैं बताती हूँ तुझे...।'' कहती हुई पद्मला ने उसका पीछा किया। अपनी
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पट्टमहादेवी शान्तला :: 115