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________________ माँ को उधर आयी हुई देखकर दोनों जहाँ थीं वहीं सिर झुकाकर खड़ी हो गयीं। इतने में माँ ने दोनों बहनों की करतूत देखकर कहा, "बहुत अच्छा है। दोनों बिल्ली की तरह क्यों झगड़ रही हो?" मौं को कोई उत्तर देने का प्रयत्न दोनों ने नहीं किया। दोनों आपसी बात को आगे बढ़ाना उचित न समझकर वहां से भाकीं । चामव्वा ने सुख निद्रा से मग्न बल्लाल कुमार को फिर से एक बार देखा, और। तृप्ति का भाव लिये अन्दर चली गयी। उधर बिट्टिदेव रेविमय्या के पीछे पड़ा ही था। उसने जो बात घूमने जाते समय नहीं कही उसे अब कहे--रेविमय्या इस असमंजस में पड़ा था, तो भी वह चाहता था कि राजकुमार बिट्टिदेव को निराश न करें। इससे भी बढ़कर उनके मन में किसी तरह का कड़वापन पैदा न हो-इस बात का ध्यान रखकर रेविमय्या किसी के नाम का जिक्र न करके बोला, "दोरसमुद्र में जो बातें हुई र्थी-सुनते हैं, किसी के स्वार्थ के कारण, तात्कालिक रूप से ही सही, युवराज का पट्टाभिषेक न हो-इस आशय को लेकर कुछ बातें हुई हैं। इससे युवराज कुछ परेशान हो गये हैं।" रेविमय्या ने बताया। "मतलब यह कि युवराज शीघ्र महाराजा न बनें? यही न?" बिट्टिदेव ने कहा। "न, न, ऐसा कहीं हो सकता है, अप्पाजी?" रेविमय्या ने कहा। "ऐसा हो तो यह परेशानी ही क्या है?" "नमक खाकर नमकहरामी करनेवालों के बरताव के कारण यह परेशानी है। सचमुच अब युवराज पर महाराजा का प्रेम और विश्वास दुगुना हो गया है।" "ठीक ही तो है। परन्तु इससे बाकी लोगों को क्या लाभ? यदि सिंहासन पर अधिकार जमाने की ताक में कहीं और से उसको मदद मिल रही हो तो चिन्ता की बात थी। पर ऐसा तो कुछ है नहीं।" "मेरे लिए भी यही हल न होनेवाली समस्या बनी हुई है। युबराज या युवरानी ने-किसी ने इस बारे में कुछ कहा भी नहीं। ये सारी बातें तो मैंने दूसरों से जानी हैं।" "फिर तो मैं माँ से ही पूछ लँगा।" "नहीं, अप्पाजी, कछ पूछने की आवश्यकता नहीं। समय आने पर सारी बातें अपने आप सामने आ जाएँगी।" "कैसा भी स्वार्थ क्यों न हो, इस तरह का बरताव अच्छा नहीं, रेविमय्या। युवराज को और जरा स्पष्ट कहना चाहिए था।" "युवराज का स्वभाव तो ख़रा सोना है। किसी को किसी तरह का दर्द न हो, इसलिए सबका दुःख-दर्द खुद झेल लेते हैं।" || :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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