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________________ पहुँचे और पौष कृष्णा एकादशी के दिन प्रातःकाल तीन सौ राजाओं के साथ पंचमुष्टि केशलोंच करके जिन दीक्षा ग्रहण की। अनन्तर गुमखेट नगर के राजा धन्य ने उन्हें आहार देकर अपने को धन्य किया। भगवान पाश्चं ने चार माह छमस्थ अवस्था के व्यतीत किए। तदुपरान्त जब वे सात दिन का योग लेकर धर्म ध्यान में लीन थे, उसी समय कमल का जीव शम्बर आकाशमार्ग से कहीं जा रहा था। अकस्मात् उसका विमान रुक गया। पूर्वजन्म के वैर को जानकर उसने पार्श्व के ऊपर भयंकर गर्जना के साथ महावृष्टि करना प्रारम्भ की। छोटे-मोटे पहाड़ तक लाकर उनके समीप गिराये; इस प्रकार उस दुर्बुद्धि ने सात दिन तक उपसर्ग किए। अवधिज्ञान से धरणेन्द्र और पदमावती शम्बर द्वारा किये गये उपसर्ग को जानकर पृथ्वीतल से बाहर निकले। धरणेन्द्र ने अपनी फणाओं के ऊपर पार्श्वनाथ को उठा लिया तथा पदमावतो वनभय छत्र तानकर खड़ी हो गईं। मोहनीय कर्म के क्षीण हो जाने से कमट कृत उपसर्ग शान्त हो गया। चैत्रकृष्णा त्रयोदशी को पार्श्वनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। उसी समय देवों ने आकर केवलज्ञान को पूजा की। केवल ज्ञान की प्राप्ति देखकर शम्बर देव भी कालला पाकर शान्त हो गया और उसने सम्यग्दर्शन सम्बन्धी विशुद्धता प्राप्त कर ली। यह देख उस वन में रहने वाले अन्य सात सौ तपस्विों ने भी मिथ्यादर्शन छोड़कर तप, संयम आदि को धारण किया। सभी सम्यग्दृष्टि होकर पाचप्रभु के चरणों में नमस्कार करने लगे। केवलज्ञान प्राप्ति के 69 वर्ष 7 माह तक बिल्हार करने के बाद आय के एक माह शेष रह जाने पर पार्श्वप्रभु 36 मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर विराजमान हो गये और वहीं से निर्वाण को प्राप्त किया। निर्वाण प्राप्ति को जानकर इन्द्रों ने आकर उनका निर्वाण कल्याणक मनाया। इस प्रकार उत्तरपुराण में भ. पार्श्वनाथ सम्बन्धी कथा निबद्ध की गई है। मरुभूति एवं कमठ ने जो भव धारण किए उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं:1. मरुभूति कमठ 2. बनधोष हाथी 2. कुक्कुट सर्प 3. सहस्रार स्वर्ग में देव धूमप्रभा नरक में नारकी 4. रश्मिवेग अजगर 5. अच्युत स्वर्ग में देव 5. छठवें नरक में नारकी 6. बज्रनाभिचक्रवर्ती 6. कुरंग नामक भील 7. मध्यम गैत्रेयक में अहमिन्द्र 7. नारकी
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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