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________________ PassettesTSTASSISTARASTARASTASTESTARAT इक्ष्वाकुवंशी राजा बज्रबाहु और रानी प्रभकरी के आनन्द नाम का प्रिय पुत्र हुआ, जो बड़ा होने पर महावैभव का धारक मण्डलेश्वर राजा हुआ। एक बार बसन्त ऋतु की अष्टान्हिकाओं में राजा आनन्द ने विपुलमति नामक मुनि महाराज से धर्मश्रवण किया। किसी एक दिन आनन्द ने अपने सिर में सफेद बाल देखा, देखकर वे विरक्त हो गये और उन्होंने अपने पुत्र को राज्य भार सौंपकर तपोव्रत धारण कर लिया। वे क्षीर वन में तपस्या कर रहे थे कि वहीं पर कमठ का जीव भी भील की पर्याय से नरक में जाकर, वहाँ के दुख भोग कर सिंह हुआ था, उसने मुनि का गला पकड़कर उन्हें मार डाला। मुनिवर मृत्यु के उपरान्त अच्युत स्वर्ग के प्राणत विमान में इन्द्र हुए। वहाँ पर उनकी आयु बीस सागर की थी। प्राणत विमान में अपनी आयु पूर्ण कर उस जीव जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्रस्थ काशी देश के बनारस नामक नगर में काश्यप गोत्री राजा विश्वसेन की महारानो ब्राझी के यहाँ शुभमुहूर्त में पौषकृष्णा एकादशी के दिन पुत्र रूप में जन्म लिया। इन्द्रों ने आकर सुमेरुपर्वत पर उनके जन्म कल्याणक की पूजा की तथा बालक का नाम 'पार्श्व' रखा। बालक पार्श्व क्रमश: वृद्धि को प्राप्त होने लगा। 16 वर्ष की अवस्था में पार्श्वकुमार सेना के साथ क्रीडार्थ वन को गये। वन में उनकी माता के पिता (नाना) महीपाल देश के राजा महीपाल अपनी पत्नी के वियोग से दु:खी होकर पंचाग्नि तप कर रहे थे। पार्श्व कुमार को बिना नमस्कारादि किये खड़ा देखकर अत्यन्त कुपित हुए। वे बुझती अग्नि में लकड़ी डालने के लिए लकड़ी काटने ही वाले थे कि कुमार पार्श्व ने "इसमें जीव हैं, इसे मत काटो" कहकर रोका, परन्तु घमण्ड के कारण उसने नहीं माना और लकड़ी काट दी, जिससे उस लकड़ी के साथ उसमें रहने वाले नाग-नागिनी युगल कट गये। पार्श्व कुमार ने उस तपस्वी को पञ्चाग्नि-तप जन्य हिंसा को समझाया किन्तु पूर्व वैर का संस्कार होने अथवा अपने पक्ष के प्रति अनुराग के कारण उसने एक न सुनी। क्रोधयुक्त हो मरने पर वह महीपाल कृत तपस्या के प्रभाव से शम्बर नामक ज्योतिषी देव हुआ। वे नाग-नागिनी भी पार्श्व के उपदेश से शान्ति भाव को प्राप्त हो, मरने पर धरणेन्द्र और पद्मावती नामक नाग जाति के देव हुए। तीस वर्ष की अवस्था में भगवान पार्श्वनाथ के पास अयोध्यानरेश जयसेन का दूत आया। उसने अयोध्या की विभूति के वर्णन के प्रसंग में भगवान ऋषभदेव का वर्णन किया, जिसे सुनकर पार्श्व को वैराग्य हो गया। वे लोकान्तिक देवों से सम्बोधित हो विमला नामक पालकी पर सवार हो अश्व वन
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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