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________________ Xxx sxesxe కోబోట్) वर्णित सम्पूर्ण घटनायें उन की काल्पनिकता को ही दर्शायेंगी। अतः इसे पूर्ण रूप से "पासणाह चरिठ" का स्रोत नहीं माना जा सकता। 2- उत्तरपुराण87 उत्तरपुराण संस्कृत क्षण में गुम्फित आ. गुणभद्र की श्रेष्ठ कृति है। इसकी रचना उन्होंने अपने गुरु आचार्य जिनसेन के स्वर्गस्थ होने पर की थी। आचार्य जिनसेन ने तिरेसठ शलाका पुरुषों के चरित का वर्णन करने के लिए 'महापुराण' (आदिपुराण ) की रचना प्रारम्भ की थी किन्तु वे इसके 42 पर्व ही लिख पाये थे कि उनकी मृत्यु हो गई, अतः अपूर्ण पुराण की पूर्ति उन्हीं के शिष्य गुणभद्र ने की और 'आदिपुराण' में 5 पर्व और जोड़कर 47 पर्वों में केवल आदिनाथ और भरत चक्रवर्ती का चरित पूर्ण किया। इसके बाद 'उत्तरपुराण' की रचना की, जिसमें शेष इकसठ (61) शलाकापुरुषों का वर्णन किया। वर्णन आधिक्य न होते हुए भी कोई भी ऐतिहासिक घटना न छूटे, इसका पूर्ण ध्यान रखा गया है। 'उत्तरपुराण' के 73 वें पर्व में वर्णित तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चरित का विभिन्न पश्चाद्वर्ती पार्श्वचरित कर्ताओं ने आश्रय लिया है। रइधू द्वारा लिखित "पासणाहचरिउ " का स्त्रोत भी यही है। कथावस्तु के आधार पर इसकी पुष्टि होती है। उत्तरपुराण में वर्णित पार्श्वनाथ सम्बन्धी कथानक इस प्रकार है जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र में सुरम्य नामक देशान्तर्गत पोदनपुर नामक नगर है। उस नगर में सुप्रसिद्ध अरविन्द नाम का राजा राज्य करता था। पोदनपुर नगर में विश्वभूति नामक ब्राह्मण अपनी अनुन्धरी नामक ब्राह्मणी (पत्नी) के साथ रहता था उन दोनों के कमठ और मरुभूति नामक दो पुत्र थे, जो विष ओर अमृत के समान थे। कमठ की स्त्री का नाम वरुणा तथा मरुभूति की पत्नी का नाम वसुन्धरी था। ये दोनों कमल और मरुभूति राजा के मंत्री थे। नीच तथा दुराचारी कमठ ने वसुन्धरी के निमित्त सदाचारी मरुभूति को मार डाला। मरुभूति मरकर मलयदेश के कुब्जक नामक सल्लकी के बड़े भारी वन में वज्रघोष नामक हाथी हुआ। वरुणा मरकर उसी वन में उसकी प्रिया हथिनी हुई। किसी एक समय राजा अरविन्द ने विरक्त हो संयम (मुनि पद) धारण कर संघ सहित वन्दनार्थ सम्मेद शिखर की ओर प्रस्थान किया। चलते-चलते वे उसी वन में पहुँचे और सामायिक का समय होने पर प्रतिमायोग धारण कर 67 पं. डॉ. पन्ना लाल साहित्यचार्य के सम्पादकत्व में सन् 1954 ई. में भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित c) 72
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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