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हुआ।55 केवलज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर नियमानुसार सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने विक्रिया ऋद्धि के द्वारा समवशरण की रचना कर दी। समवशरण का क्षेत्रफल बहुत विशाल था।56 मातंग नाम का यक्ष और पद्मा नाम की यक्षिणां तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समीप रहते थे। पार्श्वनाथ का केवलि काल 69 वर्ष 8 माह हैं। अर्थात् ये 69 वर्ष 8 माह तक केवलज्ञानी रहे। इनके इस गणधर थे, जिनमें प्रथम गणधर का नाम स्वयम था।59 तीर्थकर पार्श्वनाथ के संध में 16000 ऋषि थे।60 इनके सात गण थे, जिनमें 350 पूर्वधर, 10900 शिक्षक, 1400 अवधिज्ञानी मुनि, 1000 केवलज्ञानी, 1000 विक्रिया ऋद्धि के धारक, 750 विपुलमति अवधि ज्ञानी और 600 वादी थे।61 इनके तीर्थ में 38000 आयिंकायें थीं। इन आर्यिकाओं में सुलोका या सुलोचना प्रमुख थी2
तीर्थंकर पार्श्वनाथ श्रावणमास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रदोषकाल में अपने जन्मनक्षत्र (विशाखा) के रहते 36 मनियों के साथ सम्मेद-शिखर63 से निर्वाण को प्राप्त हुए थे।64 इनके 8800 शिंष्य अनुन्तर विमानों में गए। 6200 शिष्यों ने सिद्धपद को प्राप्त किया तथा 1000 शिष्यों ने सौधर्म आदि इन्द्र पदों को प्राप्त किया।65 इनका तीर्थकाल 278 वर्ष प्रमाण रहा।
उपर्युक्त तिलोयपण्णत्ती के विवेचन से स्पष्ट है कि इसमें भ. पार्श्वनाथ के जीवन की स्थूल बातों का ही समावेश मिलता है किन्तु उनके जीवन को प्रमुख घटनाओं का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। प्रमुख घटनाओं का उल्लेख न होने के कारण उनकी जीवनचर्या को समझने में भी कठिनाई हो सकती है और यदि रइधू कृत 'पासप्णाह चरिउ' के कथानक का स्रोत इसे मान लें तो फिर रइधू द्वारा
55 वही 700 56 तिलोयपण्णत्तो 717-890 57 वही 935-939 58 वही 960 59 वहीं 963-966 60 वही 1097 61 वही 1158 1159 62 बही 1175-1180 63 वर्तमान में भारत देश के बिहार प्रदेशान्तर्गत "पारसनाहिल" के नाम से प्रसिद्ध पर्वत
64 वहीं 1207 65 वही 1217, 1228, 1237 66 वही 1274