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________________ उल्लेखनीय भूल है : क्योंकि बौद्ध इन शब्दों का प्रयोग निगण्ठों के धर्म के वर्णन के समय नहीं कर सकते थे, यदि उन्हें यह सिद्धान्त पावनाथ के अनुयायियों से सुनने को न मिलते और बुद्ध के समान महावीर द्वारा किए गए सुधारों को निगण्ठ अपना लेते तो बौद्ध (पार्श्वनाथ के उपदेशों का निगण्ठों के धर्म के रूप में) इनका प्रयोग न करते172 : "The Buddhists, I suppose have made a mistake ascribing to Natputta Mahavirais doctrine wrich probably belonged to this predecessor Parstwa. This is significant mistrike: for the Buddhists could not hulle used the above tern res descriptive of Niyantha cried unless they hard heurd it from follolders of Pershirt, and they used inc:fale Stii: the reformers of Mahavira had alread generally adopted by the Niganthas at tite time of Huddha." निकायों में सच्चक का इस रूप में वर्णन है कि वह शास्त्रार्थों में लगा रहता है। वह विरोधी विद्वान था, जिसकी सामान्य व्यक्ति अत्यधिक प्रशंसा करते थे।173 उसने सारे छह तीर्थकों के साथ शास्त्रार्थ किया था, जिसमें निगण्ठ नातपत्त महावीर भी सम्मिलित थे। यद्यपि सच्चक निगण्ठ नातपुत्त का सुदृढ़ अनुयायी था। इससे प्रकट है कि वह पाश्वनाथ की परम्परा का अनुयायी था। चूंकि निगण्ठ नातपुत्त जैन धर्म के तीर्थंकर हुए, अत: सन्चक ने उनसे वार्तालाप कर उनका परीक्षण किया होगा, तब उनका धर्म स्वीकार कर लिया होगा।174 एक स्थान पर बुद्ध ने महानाम से कहा था कि उन्होंने राजगृह की ऋषिगिरि काल शिला पर निर्ग्रन्थों को कृच्छू तप करते हुए देखा था। तब उन्होंने उनसे कहा - आप लोग ऐसा क्यों करते हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि निर्ग्रन्थ नातपुत्त सर्वज्ञ हैं और उन्होंने कहा था कि कृच्छु तप के द्वारा समस्त पूर्व कर्म नष्ट हो जाते हैं और नए कर्मों का आगमन रुक जाता है। इस मार्ग से वे मुक्ति प्राप्त करेंगे। तब बुद्ध ने उनसे पूछा - क्या आप सब अपना और अपने कमों का भूत और भविष्य जानते हैं? आप सब लोग नहीं जानते हैं कि आपने किस प्रकार के पाप किए हैं? आप नहीं जानते हैं कि मन की 172 जैन एण्ट्रीक्वेरी, भाग. 13, नं. 2, पृ. 2 173 मदिम निकाय 1 174 वहीं 23
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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