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________________ उपर्युक्त व्याख्याओं से पासावचिज शब्द के दो अर्थ निकाले जा सकते (क) पाश्चापत्यीय भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। (ख) वे चार यामों का पालन करते थे। आचाराङ्ग 139 में "समणस्य णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावचिजा समणो वासगाया वि होत्था" ऐसा कथन आया है. इससे सिद्ध है कि भ. महावीर के पिता सिद्धार्थ पापित्यीय श्रमणोपासक और माता त्रिशला श्रमणोपासिका थी। डॉ. विमलचरण लॉ के अनुसार - भगवान पाश्व के धर्म का प्रचार भारत के उत्तरवर्ती क्षत्रियों में था, वैशाली उसका मुख्य केन्द्र था।140 वृजिगण के प्रमुख महाराज चेटक भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे।141 कपिलवस्तु में भी पार्श्व का धर्म फैला हुआ था, वहाँ "न्यग्रोधाराम" में शाक्य निर्ग्रन्थ श्रावक "वप्प'' के साथ बुद्ध का संवाद हुआ था।142 बुद्ध भगवान महावीर के समकालीन थे, इससे सिद्ध है कि भगवान महावीर से पूर्व जैनधर्म के सिद्धान्त स्थिर हो चुके थे। ____ डॉ. चार्ल्स सरपेटियर ने लिखा है कि - हमें इन दो बातों का भी स्मरण रखना चाहिए कि जैन धर्म निश्चितरूपेण महावीर से प्राचीन है, उनके प्रख्यात पूर्वगामी पाच प्राय: निश्चित रूप से एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं एवं परिणामस्वरूप मूल सिद्धान्तों को मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्र रूप धारण कर धुकी होंगी।143 हसवर्थ ने भगवान पार्श्वनाथ को गौतम बुद्ध और महावीर से पूर्ववती पुरुष के रूप में स्वीकार करते हुए लिखा है कि .. "नातपुत्त ( श्री महावीर) के पूर्वगामी उन्हीं की मान्यता वाले अनेक तीर्थङ्करों में उनका 139 आचारांग 1006 140 Kshatriya Clans in Buddhist India, P.82. 141 वेसालीस पुरीय सिरिंपासजिणेससासणसणाहो । हेहयकुलसंभूओ चेडगनामानिबोअसि । - उपदेशमाला, श्लोक 2 प्रकाशक . मास्टर 'उमेदचन्द रामचन्द, अहमदाबाद, सन् 1933 142 अंगुत्तर निकाय, चतुष्कनिपात, महावग्ग, वयसुत्त, भाग-2, पृ. 210-213 143 The Uttaradhyayana Sutra. (Uppsala 1922) : Jarl Charpentier, P.HD.. Introduction, P.21. Resesxesxescesiteshesexes as tesxesesxesrusiastexsies
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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