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________________ sxesires టోటో पार्श्व के प्रथम गणधर का नाम स्वयम्भू बताया है 109, किन्तु सिरिपासनाहचरियं में उसका नाम आर्यदत्त दिया है।110 ने प्रथम गणधर के प्रसंग का वर्णन इस प्रकार दिया है : " सभी सुरों एवं खेचरों के द्वारा संस्तुत वह मुनि स्वयम्भू पार्श्व जिनेन्द्र की भव्य जनों के मन को शतावधि संशयों का हरण करने वाली वाणी का भारक प्रथम गणधर हुआ। "111 धू ने पार्श्वनाथ की प्रथम शिष्या तथा प्रधान आर्यिका का नाम प्रभावती बताया है, वर्णन इस प्रकार है 1. " प्रभावती नाम की जो श्रेष्ठ कन्या कही गई है वह वहाँ श्रेष्ठ आर्यिका बनी। शील लक्ष्मी के निवास की शिखर ध्वजा के समान वह कन्या समस्त आर्यिका संघ की प्रधान बनी। ''112 पार्श्व प्रभु के निर्वाणोपरान्त प्रभावती आयिका ने भी अपने शरीर को त्याग कर अच्युत स्वर्ग को प्राप्त किया। 113 'समवायांग' में पार्श्व की प्रथम शिष्या का नाम पुष्पचूला कहा गया है, 114 जबकि 'कल्पसूत्र' में पुष्पचूला को पार्श्व की मुख्य आर्यिका बताया गया है । 115 सम्भवतः दोनों एक ही हों। 'तिलोयपण्णत्ती' के अनुसार मुख्य आर्यिका का नाम सुलांका था। 118 उत्तरपुराण' में उसका नाम सुलोचना आया है । 117 इस प्रकार मुख्य आर्यिका के नाम पर ग्रन्थकारों में मतभेद पाया जाता है। भ. पार्श्वनाथ के चतु:संघ में मुनि, आर्यिका आदि की स्थिति जो प्रमुख 4 ग्रन्थों में निर्दिष्ट है, वह इस प्रकार है : 109 तिलोयपण्णत्ती 2/975 110 सिरिपासनाहचरियं 15/12/4 पर दी गई टिप्पणी द्रष्टव्य है। 111 रइनु : पासणाहचरिंड 4 / 20 112 वही 4/20 113 वही 775 114 समवायांग 115 कल्पसूत्र 116 facit 4/11-80 117 उत्तरपुराण 73/153 2235 18 *Shrest 1
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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