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उनका नाम "भूतानंद" बताया है।85 पद्मकीर्ति ने अपने पासणाहचरिउ' में विघ्नकर्ता (उपसर्गकर्ता) का नाम "मेघमालिन" दिया है।86 श्वेताम्बर परम्परा में लिखे हुए सिरिपासनाचरियं, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि ग्रन्थ इसी नाम को स्वीकार करते हैं। रइधू ने उत्तरपुराण की तरह उपसर्गकर्ता का नाम संवर ही लिखा है।87 वैसे सभी इस बात पर एक मत हैं कि वह कमठ का जीव ही था। उपसर्ग का कारण : ___ संवर देव द्वारा भ. पार्श्व पर किए गए उपसर्ग का कारण दोनों के पूर्व जन्म का वैर था। संवर देव ने जब आकाश से पार्श्व को तपस्या रत देखा तो उसने इस प्रकार सोचा - "तुम पूर्वभव में कमठ नाम के जो ब्राह्मण थे उसे इसी दुष्ट (पार्श्व के पूर्वभव का जीव - मरुभूति) के कारण नगर से निकाल दिया गया था। यही महादोषी है। मैं इसे ध्यानावस्था में ही यम के घर भेज देता हूँ।''88 इससे उपर्युक्त कथन की पुष्टि होती है। धरणेन्द्र - पद्मावती द्वारा उपसर्ग निवारण :
जब संवर देव (कमठ का जीव) भ, पार्श्व पर भयंकर उपसर्ग कर रहा था, तभी सुरेश्वर (धरणेन्द्र - नाग का जीव) का आसन कम्पायमान हुआ। अवधि ज्ञान का प्रयोग करके वह अपनी प्रिया से बोला - "हे प्रिये ! जिसकी कृपा से सुरपद प्राप्त हुआ, जिसने वह परमाक्षर मन्त्र (णमोकार मंत्र) दिया था, उसी श्री पार्श्वप्रभु के ऊपर पृथ्वीतल पर अत्यन्त दुखकारी उपसर्ग हो रहा है।''89 ऐसा कहकर वे दोनों पवित्र मन वाले देव एवं देवी चल पड़े और वहाँ आये जहाँ पार्श्व प्रभु स्थित थे। तीन प्रदक्षिणायें देकर, दोनों हाथ
85 श्री पार्श्वनाथ चरितम् 10/88 86 पासणाहचरित : पद्मकीर्ति 14/5 87 रइधू : पासणाहचरित 4/घत्ता 57 88 क. हो तुहर आसि कम्मट्ठ जो बंभणों,
एण दुढेण जिद्धाडियो तं पुणो । एहु दोसी महो जाइ कि दिलओ,
णेमि अंतस्स गेहम्मि झापट्ठिभो ॥ पासणाहचरिउ - रइधू 4/7/7-8 ख. विशेष के लिए देखें - वही 6/2 से 8 तक। ४१ जसु पसाइँ पिए सुरपउ पावित, जेण आसि परमक्खर दाविउ । तहु सिरि पासजिणहुँ बहु दुहयरु, महिवट्टई उवसग्गु महायरु ।।
- रइधू : पासणाहचरिउ 4/9/7-8