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पुष्टि होती हैं। तिलोयसार और पाईपुराम 3 (हिनी में पार्थ का वर्ण 'नील' बताया गया है। वादिराज ने स्वलिखित पार्श्वनाथ चरित में पार्श्व प्रभु को 'श्यामवर्ण'44 का और मरकत की तरह 'हरित वर्ण'45 का माना है। सुप्रसिद्ध कल्याणमन्दिर स्तोत्र में पार्श्वनाथ का 'श्याम वर्ण' बताया है।46 भक्ति गीतों में 'सांवलिया पारसनाथ' कहकर भी पार्श्वनाथ की अनेक जगह गुणगान किया जाता हैं और वर्तमान में मिलने वाली अधिकांश पार्श्वनाथ की जैन मर्तियाँ श्याम वर्ण की ही हैं, इससे भी उनके श्याम वर्णी होने का आभास मिलता है।
उपर्युक्त विवेचन से पार्श्व के तीन वर्ण मिलते हैं - हरित, नील और श्याम। लेकिन एक ही व्यक्ति के तीन रंग होना सम्भव नहीं है। इस विषय में श्रीमान पं. रतनलाल मिलापचन्द कटारिया ने लिखा है कि - काला, नीला और हरा; 'ये तीनों रंग एक (कृष्ण) ही माने जाते हैं।47 फिर भी युक्तिवाद . का आश्रय लें तो निम्न तथ्य सामने आता है -
"काले वर्ण के मनुष्य तो देखे जाते हैं, किन्तु हरे और नीले रंग के मनुष्य कहीं भी देखने में नहीं आते।" हाँ नीली आँखों वाले मनुष्य अवश्य देखे जाते हैं।+8
उपर्युक्त विवेचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि पार्श्वनाथ का वर्ण न्यूनाधिक श्याम ही रहा होगा। शरीर का उत्सेध (ऊँचाई):
भ. पार्श्वनाथ के शरीर की ऊँचाई नव हस्त (नौ हाथ) प्रमाण थी,49 ऐसा तिलोयपण्णत्ती में उल्लेख मिलता है। परवर्ती एवं पूर्ववर्ती सभी ग्रन्थकार इससे सहमत हैं। रइधू भी यही मानते हैं।50
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42 तिलोयसार (नेमिचन्द्रकृत) श्लोक 847 43 पार्श्वपुराण (भूधरदास)7/30 (नीलवरण नो हाथ उत्तंग) 44 पार्श्वनाथचरित (वादिराज) 1.9 एवं 10/69 45 पाश्वनाथचरित (वादिराज) 10/68, 11/23 एवं 45 46 कल्याणमन्दिर स्तोत्र, श्लोक 23 47 द्र. श्री पं. मिलापचन्द्र रतनलाल कटारिया द्वारा लिखित लेख "तीर्थङ्करों के शरीर का
वर्ण" (जैन निबन्ध रत्नावली) पृ. 135 48 वही पृ. 138 49 तिलोयपण्णत्ती 4:587 50 रइधू : पास. 2/15