SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भव्य जीव: ___ जिनमें रत्नत्रय गुण प्रकट करने की योग्यता होती है, वे भव्यजीव कहलाते हैं। भव्य जीवों के तीन भेद होते हैं1. निकट भव्य : तद्भव मोक्षगामी या दो-चार भव में ही मोक्ष जाने वाले निकट भव्य कहलाते हैं। ये व्यक्त सम्यग्दृष्टि होते हैं। 2. दूर भव्य : कई भवों के बाद मोक्ष जाने वाले (अव्यक्त सम्यग्दृष्टि) जीव "दूर भव्य" कहलाते हैं। 3. दूरानुदूर भव्य : जो कभी मोक्ष नहीं जाते, सिर्फ उनके मोक्ष जाने की शक्ति मात्र रहती है, जिससे वे भव्य कहलाते हैं, किन्तु उनकी शक्ति कभी व्यक्त नहीं होती अतएव वे सदाकाल अभव्यों की ही तरह संसार में ही निवास करते हैं।938 अभव्य जीव: जिनमें रत्नत्रय गुण प्रकटाने की योग्यता नहीं होती, वे अभव्य जीव कहलाते . । सिद्ध जीव (मुक्त जीव): जिन्होंने संसार, शरीर और अष्टकर्मों को जीत लिया है और जो लोकाकाश के अन्त में निवास करते हैं, वे सिद्ध या मुक्तजीव कहलाते हैं। ये सिद्ध जीव नित्य, अरूपी एवं सम्यक्त्व-प्रमुख गुणों के धारी, अष्ट ऋद्धियों से युक्त, अमूर्तिक, विवर्ण (रूप से रहित), ज्ञान के पिण्डस्वरूप, अष्टकर्मरहित और अखण्ड सुखों के धारी, परमानन्दामृत से निरन्तर तृस, श्रेष्ठ अनन्त गणों के आकर एवं आत्मरस से सिक्त होते हैं, जन्म-जरा और मरण से रहित हैं।339 शुद्ध (सिद्ध) जीव अकेला ही निरञ्जन, ज्ञानमय एवं कर्म विमुक्त 340 होता है। ये सिद्ध जीव त्रिजग में सारभूत तथा भव्यजनों के लिए उत्तम बोधि प्रदान करते हैं। 341 338 पुरुषार्थ सिद्धयुपाय की हिन्दी टीका, पृ. 98 टीकाकार - पं. मुन्नालाल रांधेलीय वर्णी 339 पास. 5/26 340 वही घत्ता-42 341 वहीं, पत्ता-97 ResdeshesdeshesdesiSRESTS 228 dSesiesdesesiasmosies
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy