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________________ पुष्कारार्द्ध द्वीप का वर्णन : पुष्कारार्द्ध द्वीप सोलह लाख योजन विस्तार वाला है तथा मानुषोत्तर पर्वत से विभक्त है। वह वलयाकार से उसके मध्य में स्थित है, इसलिये इस द्वीप का माम पुष्करार्द्ध द्वीप कहा गया है। इसके मध्य में पूर्व एवं अपर दोनों दिशाओं में मेरु (पर्वत) स्थित हैं, जो देवताओं को प्रिय हैं।294 सूर्य एवं चन्द्रमा का प्रमाण295 ; ___ जम्बूद्वीप में दो दो सूर्य एवं चन्द्रमा होते हैं। लवण समुद्रों में चार-चार सूर्य एवं चन्द्र, धातको खण्ड में बारह-बारह सूर्य एवं चन्द्र, कालोदधि में ब्यालीसब्यालीस सूर्य चन्द्र और पुष्करार्द्ध द्वीप में बहत्तर-बहत्तर सूर्य एवं चन्द्र हैं। ये निरन्तर मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं और अढ़ाई द्वीप के अन्धकार का नाश करते हैं। जम्बूद्वीप में छत्तीस ध्रुव तारे, रौद्र जल वाले लवणसमुद्र में एक सौ उन्तालीस, धातकी खण्ड में एक हजार दस, कालोदधि में इकतालीस हजार एक सौ बीस और पुष्कराद्धं द्वीप में त्रेपन हजार दो सौ तीस ध्रुव तारे हैं, जो कि निश्चल हैं। अढ़ाई द्वीप के बाहर भी अन्धकार का नाश करने वाले चन्द्र, सूर्य एवं नक्षत्र घण्टाकर रूप में हाथी की गति के समान विचरण करते हुए जहाँ स्वयम्भूरमाणसागर पार होता है, वहाँ तक स्थित हैं। ऊर्ध्व लोक : ___ मेरु से ऊपर लोक के अन्त के क्षेत्र को ऊवं लोक कहते हैं। इसके दो भेद हैं : कल्प और कल्पातीत। जहाँ इन्द्र, सामानिक आदि की कल्पना होती है, वे कल्प हैं। जहाँ यह कल्पना नहीं है, वे कल्पातीत हैं296 ___ स्वर्ग के कल्पभाग में रहने वाले देव (इन्द्र) कहलाते हैं और कल्पातीत भाग में रहने वाले अहमिन्द्र कहलाते हैं। 294 पास. 5.33:15 मे 18, 295 वही 5:34 296 . लोथंडकार महावीर कौर उनकी प्राचार्य परम्परा अनुप 1]. -7 Tushresxestusxesiesresses 218 lisxessiesresthesiresiesmes
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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