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________________ __ उत्तर दिशा में जो नील कुलाचल हैं, वह भी सिद्धशिला के समान सुखकारी हैं, इसके बाद रुक्मि एवं शिखरी पर्वत जानिए, वहाँ केशरी और महापुण्डरीक (सरोवरों) को मानें। वहीं पुण्डरीक सरोवर भी है। इन तीनों (सरोवरों) को ज्ञानीजन "नदियों का जन्मदाता" कहते हैं। दक्षिण देश में रम्यक् , हैरण्यवत् तथा ऐरावत नामक क्षेत्र एवं सीतोदा प्रधान नदियाँ हैं P90 लवणोदधि (द्वीप) का वर्णन : __ लवणोदधि नामक सागर जम्बूद्वीप से दुगुना प्रमाण वाला वर्णित है, जिसका विस्तार दो लाख योजन कहा गया है और जो दिशाओं एवं विदिशाओं को बड़वानल से युक्त करता है। द्वीप के बाहर एक विशाल बज्रमयी वेदिका सुशोभित है। उसकी बारह योजन की वीथी है, जिसका मध्यभाग एक आठ योजन वर्णित है। उसका ऊपरी भाग चार योजन और ऊँचाई आठ योजन प्रमाण है, उसकी दोनों दिशाओं में अखण्ड उपवेदिकायें हैं और वह देवारण्य (पवित्र उपवन) से सुशोभित है। 31 धात की खण्ड द्वीप का वर्णन : लवणोदधि के बाद धातकीखण्ड (डीप) है, जो लवणोदधि से दुगुना है। यह चार लाख योजन है। इसके पूर्व और पश्चिम दिशा में दो सुमेरुपर्वत हैं और जिन पर प्रत्येक दिशा में स्वर्ण वर्ण वाले देवता क्रीडायें किया करते हैं। प्रत्येक से सम्बन्धित चाँतीस क्षेत्र हैं और उतने ही विजयार्ध हैं। छह कुलाचल और चौदह नदियाँ एवं सरोवर हैं। इन आर्य भूमियों में उत्तम मनुष्य विलास करते हैं।292 कालोदधि द्वीप का वर्णन : कालोदधि नामक द्वीप धातकी खण्ड से दोगुना अर्थात् आठ लाख योजन विस्तार वाला है 293 289 पास. 5:32 290 वही घता-103 291 वही 5:33 से 6 292 की 5:337 से 11 293 वही 5.33/13
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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