SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारकियों का अवधिज्ञान केवल आधा कोस कम एक योजन है।222 मार्जार आदि दुखपूर्ण जीव इसी नरक में जन्म लेते हैं।23 इस (वंशा) नरक से निकलकर जीव शोभायुक्त तीर्थंकरत्व को प्राप्त करता है। उनका पुनः नरक में आगमन नहीं होता, वे नारायण, बलभद्र, प्रतिनारायण, चक्रेश्वर आदि पद को प्राप्त करते हैं. बाधारहित होते हैं।224 इसमें उष्णवेदना होती है|225 तृतीय सेला नरक : तीसरा नरक जिन भगवान ने सेला नाम वाला बताया है।226 इसमें नो नरक प्रस्तार227 तथा पन्द्रह लाख बिल हैं।228 ये बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध एवं कुसुम प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं, जिसमें नाना प्रकार के अमित नारकी जीव निवास करते हैं 29 इस नरक के जीवों का देह प्रमाण इक्कीस दण्ड एवं अठारह अंगुल अधिक नौ हाथ हैं।230 आयु का उत्कृष्ट प्रमाण सात सागर है231 तथा निकृष्ट आयु तीन हजार वर्ष है।232 इस (सेला) नरक का द्वितीय भाग बालु प्रभा है।233 इसकी प्रभा बालु को प्रभा के समान है, अत: यह भूमि बालु प्रभा कही गई है।234 इस नरक के नारकियों का अवधि ज्ञान केवल तीन कोस प्रमाण है।235 इस नरक में पापी विहङ्गम जन्म लेते हैं, जहाँ वे निरन्तर घातों से सन्तप्त होते हैं।236 तृतीय नरक से निकलकर जीव शोभायुक्त तीर्थकरत्व को 222 रइभू : पास. 5/18:3 223 वही 5:18/6 224 वही 5:18 एवं पत्ता-89 225 सर्वार्थसिद्धि. व्याख्या ट्रीका 371 पृ. 150 226 पास. 5/16114 227 वहीं 5:16:8 228 बही 51/16/12 229 वही 5:16/15 16 230 बही 5:16.77 231 वही 5:17/4 232 वही 5:17/9 233 वही,पत्ता -88 234 सर्वार्थसिद्धिः हिन्दी व्यारव्या-367. पृ. 147 235 पास, 5/18/3 236 "सिंजाइ जति विहंगम पाविय, णिच्च जस्थ घायहिँ संतात्रिय ॥'' वही 5/18/7 Pastestakesxesesses 209 SxeshisxesxSEXSI
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy