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________________ प्रथम नरक में नारकियों का अवधिज्ञान केवल एक योजन प्रमाण कहा गया है208 अमनस्क जीव प्रथम नरक तक उत्पन्न होता है।209 वहाँ से निकलकर जीव शोभा युक्त तीर्थंकरत्व को भी प्रास करता है और चौंतीस अतिशयों से परिपूर्ण आठवीं पृथ्वी प्राप्त कर वह धन्य हो जाता है।210 वे नारायण, प्रत्तिनारायण, बलभद्र और जयलक्ष्मी के धारी तथा छह खण्डधारी चक्रेश्वर पद प्राप्त करते हैं। बाधा से रहित होते हैं तथा सुगति को साधने के कारण उनका नरकों में आगमन नहीं होता।11 इस नरक में उष्ण वेदना होती है212 द्वितीय वंशा नरक: द्वितीय नरक वंशा नाम वाला है।13 इसमें ग्यारह नरक प्रस्तार हैं, जिनमें नारकियों के कुल दुःखों से परिपूर्ण रहते हैं।214 इसमें दुखों को देने वाले पच्चीस लाख बिल हैं।15 ये बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध एवं कुसुमप्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं, जहाँ पर नाना प्रकार के अमित नारकी जीव निवास करते हैं 216 इस नरक के जीवों का शरीर चौदह दण्ड एवं बारह अंगुल अधिक छह हाथ है।17 इस नरक में उत्कृष्ट आयु का प्रमाण तीन सागर है218 तथा जघन्य आयु एक सागर प्रमाण कही है।219 इस नरक की भूमि का नाम शर्कराप्रभा है। 220 जिसकी प्रभा शर्करा के समान हो, वह शर्कराप्रभा भूमि है 21 इस नरक में - -- - - --- - - - - 208 रइघु : पास. 5/18/2 209 वहीं, 3/18/6 210 वहीं,5/18/15-16 211 वहीं, बत्ता- 89 212 सर्वार्थसिद्धि: पूज्यपाद, व्याख्या टीका 371, पृ. 150 213 पास. 5/16/4 214 वही 5/16/7 215 वही 5/16/11 216 वही 5/16/15-16 217 वही 5/17/1 218 वही 5/17:4 219 वहीं 5/178 220 वही,पत्ता- 98 221 सर्वार्थसिद्धि : पूज्यपाद : पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्या टीका 367, पृ. 147 Desesesesxesxesesistej 2os deskesiestesesacsiesdes
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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