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________________ I अपरिग्रह उसका आलम्बन है। इसकी (धर्म की ) प्राप्ति नहीं होने से दुष्कर्म विपाक से जायमान दुःखों को अनुभव करते हुए ये जीव अनादि संगर परिभ्रमण करते हैं परन्तु इसका लाभ होने पर नाना प्रकार के अभ्युदयों की प्राप्ति पूर्वक मोक्ष की प्राप्ति होना निश्चित है; ऐसा चिन्तन करना धर्मस्वाख्यातानुप्रेक्षा है। इस प्रकार चिन्तन करने वाले इस जीव के धर्मानुराग वश उसकी प्राप्ति के लिए, सदा यत्र होता है। 138 उपर्युक्त द्वादश अनुप्रेक्षाओं को जो जीव ह्रदय में धारण करता है. उन्हें संबर की प्राप्ति होती है, जिसमे शुभाशुभ कर्मों का आना रुक जाता है। मोक्ष प्राप्ति का उपाय : रत्नत्रय139 : सम्यग्दर्शन, सम्यकजीन अभिहित किए जाते हैं। इतना कही गई हैं।140 :.. रत्नत्रय की महत्ता : जिसने रत्नत्रय रूपी श्रेष्ठ रत्नों को प्राप्त कर लिया के लिए शोक नहीं किया जाता । 141 रत्नत्रय से युक्त धर्म ही श्रेष्ठ हैं। 142 जिसने पात्र की जान लिया, वह विषयों में आसक्त कैसे रह सकता है 2143 141 रहधू पास. 3/3 142 वही 3/23 TH: 2014. सम्यग्दर्शन : मिथ्यात्व के निरोध के लिए सम्यक्त्व ( सम्यग्दर्शन) कहा गया है। 144 तत्त्वार्थं का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। 145 आचार्य समन्तभद्र के अनुसार - 138 सर्वार्थसिद्धि ( पूज्यपाद) संस्कृत टीका - 810 139 रइधू पास 3/3, 3/23, 3/25 इत्यादि । 140 सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः " तत्त्वार्थसूत्र - 1/1 143 वही 4/5 144 वही 3 / 21 ना. य 145 तत्रार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् " तत्त्वार्थसूत्र 12 - 237235) 195 195 SXSXexxsexxxxsxesi
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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