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शासनहर :
उपहार के भीतर रखे हुए पत्र को ले जाने वाला दूत शासनहार कहा जाता हैं।
गाईचरिर में वर्णिम टुन ।
"पासणाहचरिउ" की तृतीय सन्धि के प्रारम्भ में कुशस्थलनरेश अर्ककीर्ति का मंत्री राजा अश्वसेन के पास दूत के रूप में आता है और राजा अश्वसेन से यवन नरेन्द्र द्वारा शत्रुवर्मा को मारे जाने और उनके पुत्र अर्ककीर्ति के सहायता माँगने आदि का वृतान्त कहता है। अपने वार्तालाप के बीच ही वह यवन नरेन्द्र के दूत द्वारा धमकी देने की भी बात कहता है, जिससे सिद्ध होता है कि दूत अपने शासन की ओर से धमकी देने का भी कार्य करते थे। द्रत के विशाल मति वाल, विद्वान्, दूसरों के हृदयों के विचारों को जानने वाला और अर्थज्ञाता आदि लक्षणों का भी यहीं पता चलता है।92
उपर्युक्त पासणाहचरिउ में वर्णित दूत के लक्षणों एवं कथन आदि से उसका शासनहर नामक दूत होना सिद्ध होता है। डॉ. राजाराम जैन ने भी उसे शासनहर दूत ही माना है। युद्ध : युद्ध का कारण : ___पौराणिक कथानकों में युद्धों के प्रसंग प्राय: नायक की वीरता को प्रदर्शित करने के लिए रखे जाते होंगे, ऐसा 'पासणाहचरित' से आभास मिलता है। प्राचीनकाल में प्रायः युद्ध किसी न किसी कारण से होते थे, जैसे-श्रेष्ठता का प्रदर्शन, साम्राज्य विस्तार, स्वाभिमान की रक्षा और कन्या। 'पासणाहचरिउ' में वर्णित कालयवन और अर्ककीर्ति का युद्ध "कन्या" के कारण ही होता है। युद्ध वर्णन :
'पासणाहचरिउ' में एकमात्र कालयवन और राजा अर्ककीर्ति के बीच ही युद्ध होना दिखाया गया है। इस युद्ध में राजा अर्ककीर्ति की सहायता राजकुमार -. ..91 आदिपुराण 43/202 92 पास. 3/1-2 93 रइधू ग्रन्थावली, भूमिका, प.17 94 तहु णियपुत्ति देहि सुहि णिवसहि ।। -पास. 3:2