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( फावड़ा), धणुवरु०० ( धनुष), सत्ति81 ( शक्ति नामक अस्त्र), कुठार, B2 तथा
घण83 (घन, हथौड़ा)।
दूल ( दूत ) 84 :
दूत का लक्षण :
जो अधिकारी दूरदेशवर्ती राजकीय कार्य का साधक होने के कारण मन्त्री के समान होता है, उसे दूत कहते हैं। 85
दूतों के भेद :
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दूत तीन प्रकार के होते हैं 1 निःसृष्टार्थ, 2. परिमितार्थ, 3. शासनहर 1 निः सृष्टार्थ :
स्वामी के कान के पास रहने वाला, रहस्य रक्षा करने वाला, सुयोजित पत्र लेकर जल्दी जाने वाला, मार्ग में सीधे जाने वाला, शत्रुओं के हृदय में प्रवेश कर कठिन से कठिन कार्य को सिद्ध करने वाला तथा विवेकी बुद्धि वाला 87 दूत निः सृष्टार्थ कहलाता है। आचार्य सोमदेव के अनुसार जिसके द्वारा निश्चित किये हुए सन्धि विग्रह को उसका स्वामी प्रमाण मानता था, वह निः सृष्टार्थ है। जैसेपाण्डवों के कृष्ण 88
परिमितार्थ या मितार्थ :
परिमित समाचार सुनाने वाला 89 अथवा राजा द्वारा भेजे हुए सन्देश और लेख को जैसा का तैसा शत्रु से कहने वाला१० दूत परिमितार्थं या मितार्थ
कहलाता था।
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पास. बत्ता --- 32
वही 3/8
वही 3/12
वही 5/19
वही घत्ता 26 नीतिवाक्यामृत 16/1 आदिपुराण 44/136-137
वही 3489 नीतिवाक्यामृत 13/4 आदिपुराण 43/202 नीतिवाक्यामृत
SX25) 167
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