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राजा अरविन्द भी गुणों का सागर एवं सूर्य समान तेजस्वी, शत्रुसमूह को सन्त्रस्त करने वाला था।11 जिसके भय से शत्रुजन जंगलों में निवास करते थे, जिसने सेवक जनों की आशाओं को पूर्ण किया था, जिसके यश ने आठों दिशामुखों को धवलि किया था, जो जय श्री का निवास था, अत्यन्त प्रचुर कोश का स्वामी था और जिसने अपराधियों को दण्ड से खण्डित कर दिया था।12 ___जैन आगमों में सापेक्ष और निरपेक्ष दो तरह के राजाओं का उल्लेख हुआ है। सापेक्ष राजा अपने जीवनकाल में ही पुत्र को राज्यभार सौंप देते थे, जिससे राज्य में गृहयुद्ध की सम्भावना न रहे। निरपेक्ष राजा अपने जीवित रहते किसी को भी राज्य का उत्तराधिकारी नहीं बनाते थे।13
'पासाहपरिउ' सना उमारे सोध रामओं का ही वर्णन किया गया है। राजा अरविन्द ने दिगम्बरी दीक्षा (तपोभार) धारण करने से पूर्व ही राज्य का भार अपने पुत्र को सौंप दिया था।14 राजा के गुण : ___ 'पासणहचरिउ' के अनुसार राजा को गुणवान् अन्याय और न्याय के शासन में प्रवीण, पंचांगमंत्र के नीतिशास्त्र में प्रवीण, शत्रुराजाओं को सन्त्रस्त करने वाला, शूरवीर, अद्वितीय सौन्दर्य से युक्त, विशाल शरीर एवं अतुलित बलशाली, सप्ताङ्ग राज्य के भारवहन करने में समर्थ, दानवीर, साहसी, छत्तीस प्रकार के शस्त्रास्त्र चलाने में निपुण, कुबेर के समान प्रचुर कोश का धनी, यशस्वी15, समुद्र के समान गम्भीर16, प्रजापाल, परिजनों का स्नेह पूर्वक पालन पोषण करने वाला17 होना चाहिए।
'पासणाहचरिउ' में वर्णित राजा इन्हीं गुणों से युक्त हैं।
11 12 १३ 14 15 16 17
पास,6/6 वही 6/2 निशोथसूत्र, सूत्र 71, गाथा 3363 की चुी, पृ. 198 रइधू : पास. 6/10 रइधु : पास. 1/4 वही 1/10 वही 31
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