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________________ करते हुए कहा है कि-रघु ने प्रजा का रंजन करके अपना राजा नाम सार्थक किया। इससे शासक को राजा कहने का प्रयोजन स्पष्ट होता है। अतः "राजा" शब्द की निष्पति "राज+कनिम्" को अपेक्षा "र+कनिन्" भारतीय परिवेश में अधिक सटीक है। बौद्धों के पालि साहित्य में भी राजा की यही सैद्धान्तिक न्याख्या गालब्ध होती है 5 दानीपसिंह अनुमार राजा द्वारा समस्त पृथ्वी एक नगर के समान रक्षित होने पर राजन्वती (श्रेष्ठ राजा वाली) और रत्नसू (रलों की खान) हो जाती है। राजा जन्म को छोड़कर सब बातों में प्रजा का माता पिता है, उसके सुख और दुःख प्रजा के आधीन हैं। राजा दण्डयोग्य व्यक्तियों को दण्डविधान और अदण्डयोग्य व्यक्तियों को सम्मानपूर्वक प्रजाओं को भलीप्रकार शत्रुओं के हाथ से रक्षा करके पालन करता है तो प्रजागण भी धन-धान्यादि के द्वारा राजा की सम्पत्ति को बढ़ाता है। बढ़ाना और रक्षा करना, इनमें रक्षा करना ही श्रेयस्कर है, क्योंकि शत्रुओं के हाथ से प्रजा की रक्षा न करने से राजा का मंगल नहीं होता। आचार्य सोमदेव के अनुसार जो धर्मात्मा, कुलाचार व कुलीनता के कारण विशुद्ध प्रतापी, नैतिक दुष्टों से कुपित व शिष्टों से अनुरक्त होने में स्वतंत्र और आत्मगौरवयुक्त तथा सम्पत्तिशाली हो, उसे स्वामी (राजा) कहते हैं ___'पासणाहचरिउ' के अध्ययन से पता चलता है कि राजा अश्वसेन ऐसा ही राजा था, जो अपनी प्रजा का सदैव ध्यान रखता था, जो अपने कुलरूपी कमलों . के लिए दिनकर के समान तथा लावण्य और गम्भीरता में परिपूर्ण आवर्त (शारीरिक चेष्टा विशेष) से मण्डित शरीर वाला था, जिसने रणक्षेत्र में पराक्रमी शत्रुजनों का विग्रह किया था और जो ऐसा था, मानो पृथ्वी पर धर्म ही अवतीर्ण हो गया हो अथवा जय लक्ष्मी ने मानो नवीन वर ही धारण कर लिया हो। 10 तथैव मोऽभूदन्वर्थो राजा प्रकृतिरञ्जनात् || रघुवंश 4:12 "धम्मेन परे रंजतीति खो वासेठ राजा, राजा त्वेव ततियं अखरं" उपनिब्बतं । दीघनिकाय (पालि) पथिकवग्ग अग्गज्ञसुत्त 3/21. .73 छत्रचूड़ामणि 11/2 वही 11/4 प्रजा संरक्षति नपः सा वर्द्धयति पार्थिवम् । वर्द्धनाद्रक्षणं श्रेयस्तदभावे सदप्यसत् ।। कामन्दकोयनीतिसार 1/12 नीतिवाक्यामृत 17:13 रइभ्रू : पासगावरिंउ 1/10 10
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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