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सरोवर :
केमरि (5/32), महापुंडरीक (5/32) तिगिञ्छ (5/31), पद्म (5/28), महापद्म (5/31), पुण्डरीक (5/28) इत्यादि। जीव-जन्तु :
"पासणाहचरिउ" में निम्नलिखित जीव जन्तुओं का वर्णन मिलता है : ।
गौ (गाय) (1/4, 119), वृषभाबैल (1/4, 2/3, 214, 6/1), गज (1/4, 2/3, 2/4), सिंह (1/4, 2/3), हंसिणी (1/6), कोयल (116), शुक (179) मृग (हरिण) (2/3, 4/8, 5/11), हय (घोड़ा 3/3), भुजंग (सर्प 214, 3/13), भ्रमर (213), मीन (2/3), संड (साँड़ 4/8), मार्जार, कुत्ता, नकुल, गिद्ध (516), मकड़ी, मच्छर, मक्खी (5/8), शूकर, सांभर (5/11), श्वान (कुत्ता 5/10), मत्स्य (मछली 5/18), महिष (भैंस 6/1), खर (गधा) (6/5), हंस (619) तथा शबर (6/16) आदि। वनस्पतियाँ :
"पासणाहचारठ'' में निभलिखित वनस्पतियाँ वर्णित हैं :
शालि (2/16), कमल (1/6), मालती (2/2), चन्दन (2/13), रायचम्या (2/13), शाल्मलिवृक्ष (5/19), तमाल, ताल (619) आदि।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि कवि रइधू को प्रकृति का अच्छा ज्ञान था और यही कारण है कि "पासणाहचरिउ" के अधिकांश प्रसंग प्रकृति से अपना सामीप्य बनाए रहे। संवाद-सौष्ठव :
किसी भी काव्य की सुन्दरता उस काव्य के संवादों में निहित होती है। जिस प्रकार किसी के भावों को जानने के लिए भावाभिव्यक्ति आवश्यक होती है और वह भावाभिव्यक्ति वाचनिक रूप में हो तभी उसे जाना जा सकता है। किसी अज्ञात लेखक ने कहा है कि - "यदि किसी व्यक्ति या महात्मा के चारित्रिक गुणों की टोह लेनी हो तो यह आवश्यक है कि उसके साथ संवाद स्थापित किया जाय।" वास्तव में यह बात सत्य ही है क्योंकि बाह्य-- आकृति, वस्त्राभूषण आदि किसी व्यक्ति की विपन्नता या सम्पन्नता को