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________________ था और प्रत्येक सरोवर में नौकायें चल रही थीं। पुन: प्रत्येक सरोवर में पच्चीस-पच्चीस पुरैन (कमल) थे। एक-एक पुरैन पर सवा-सवा सौ श्रीगृह थे। श्रेष्ठ कान्तिपूर्ण एवं विकसित एक-एक कमल में 108 - 108 पत्ते थे46 भगवान पार्श्वनाथ की पूजा-सामग्री हेतु भी कवि ने प्रकृति प्रदत्त द्रव्यों, पुष्पों आदि का सहारा लिया - शक्रराज ने भक्ति भावपूर्वक जिननाथ की चन्दन से पूजा की। जल, गन्ध, अक्षत, पुष्य, भक्ष्य (नैवेद्य), दीप, धूप, फल - इन आठ द्रव्यों से भगवान की पूजा की गई। प्रमदवन में जाकर राय चम्पा और मालती (पुष्प) लाकर शची ने भव्यमाला ग्रथित कोला कवि ने "पासणाहयरिउ" में तापसियों का भोजन प्रकृत्ति प्रदत्त फलों का ही बताया है- "वे तापस पञ्चाग्रि तपों के व्रती हैं। वे केवल फल, कन्द एवं मूल का भक्षण करते हैं। चतुर्थ सन्धि में कवि ने वर्षा ऋत में होने वाली भयंकर जल तो का बड़ा ही मनोहारी वास्तविक चित्रण किया है - "आकाश में प्रचण्ड वज्र तड़तड़ाने, गरजने, घड़घड़ाने और दर्पपूर्वक चलने लगा। तड़क भड़क करते हुए उसने सभी पर्वत समूहों को खण्ड-खण्ड कर दिया। हाथियों की गुर्राहट से मदोन्यत्त साँड़ चीत्कार कर भागने लगे। आकाश काले भ्रमर, ताल और तमाल वर्ण के मेघों से आच्छादित हो गया - मृगकुल भय से त्रस्त होकर भाग पड़े और दुखी हो गये, जल धाराओं से पक्षियों के पंख छिन्न-भिन्न हो गये। नदी, सरोवर, गुफायें, पृथ्वीमण्डल एवं वनप्रान्त, सभी जल से प्रपूरित हो गये केवलज्ञान प्रासि के उपरान्त भगवान को जो दश अतिशय हुए उनमें भी प्रकृति सह मागी रही . "वन पत्रों एवं पुष्पों से पूर्ण होने के कारण पृथ्वी हरित् वर्ण से आच्छादित दिखाई देने लगी। योजन प्रमाण क्षेत्र में पृथ्वी तृण एवं काँटों से रहित दर्पण के समान स्वच्छ दिखाई देने लगी। 150 46 वही 26 47 वही 2/13 48 वहीं 3/17 49 पास. 418 50 वहीं 4/17
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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