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________________ को भगाती है, किन्तु वह शुक समूह अपने कलरव में ही मानो उसी की प्रतिध्वनि को धारण करता है।''43 वामा देवी की केश सज्जा एवं सौन्दर्य प्रसाधन में भी प्रकृति ने अंलकार का कार्य किया है - कोई : सखी) व (थाम्) के सिर के केरापान को द्विरेफ या भ्रमर की आवाजसहित मालती पुष्प की माला से रसाल मस्तक प्रदेश को संवारती थी।44 __ "पासणाहचरिउ" की द्वितीय सन्धि में वामा देवी को स्वप्नदर्शन के बहाने कवि के द्वारा मानो सम्पूर्ण प्रकृति-सुषमा का ही निरीक्षण करवाया गया हो - सर्वप्रथम (उस वामा देवी ने) सुगन्धित कर्णों से युक्त, चन्द्र किरणों के समान स्वच्छ चार धवल दाँतों वाले एवं प्रचण्ड गर्जन करने वाले गजेन्द्र को देखा। ढिक्कार छोड़ते हुए विशाल कन्धों वाले तथा सैकड़ों प्रकार के सुख देने वाले वृषभ (बैल) को देखा। फिर अपने नाखून वाले पंजों को ऊपर उठाये हुए घुमंची के समान वरुण नेत्र वाले एवं मृगों के प्राण हरण करने वाले मृगेन्द्र को देखा। तत्पश्चात् जगवल्लभा लक्ष्मी को अपने समीप देखा तथा भ्रमरों से युक्त श्रेष्ठ पुष्पमाला को देखा। तदनन्तर अमृत को धारण करने वाला परिपूर्ण कलाकर, अन्धकार के भार का नाश करने वाला सूर्य, सरोवर में क्रीड़ा करते हुए मौनयुगल तथा आकाश में पल्लव शोभित घटयुगल को देखा और भी विमलजल से युक्त कमलाकर, जलचर समूहों से चपल रत्नाकर, रत्नमय सिंहासन एवं आता हुआ एक विमान देखा। बहुत शोभा सम्पन्न नागालय, आश्चर्यचकित करने वाला रनपुंज, निर्धूम एवं सीधी शिखा वाली अनि देखी45 कवि ने मन्दर पर्वत की सुषमा का वर्णन करते हुए प्रकृति के साकार रूप को प्रत्यक्ष कर दिया है - "जो अपनी धवलिमा में चन्द्रमा के समान था, अलिवृन्दों के गुंजन से भरा था और गृद्ध पंक्ति रूपी अनेक घण्टों से मुखर था। वह पर्वत सहस्र योजन प्रमाण तथा कन्दरारूपी सौ मुखों से युक्त था। प्रत्येक मुख में सुशोभित दन्तमुसल था। प्रत्येक दाँत पर एक-एक सरोवर 43 पास. 119 44 वही 212 45 पास. 2/3 PUSSxxxesesesexests 130 CResseusesxesm
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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