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________________ था। इन्द्र ने दीर्घबाहुनाथ का मर्दन किया और इन्द्राणी ने उबटना7, पुनः शुद्धोदक से स्नान कराकर उन लोगों ने गन्धोदक की वन्दना की। श्रेष्ठ वस्त्र से शरीर पोंछा एवम् मेरु के समान धीर भगवान को दूसरे आर न पर स्थापित किया। पुनः इन्द्र ने अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा की|79 ___इन्द्र ने जिनेन्द्र को कुण्डलयुगल से मण्डित किया। बहुमूल्य रत्नमुकुट एवं देवदूष्य तथा प्रशस्त स्वर्ण निर्मित तथा मणिजटित केयूर, कड़े, कटिसूत्र , श्रृंखला, हार एवं सिर पर तीन विशाल छत्र धारण किए। श्री पार्श्वनाथ' नाम रखकर वह वाराणसी की ओर चला। भगवान को इन्द्राणी ने माता को सौंपा। अश्वसेन के लिए इन्द्र ने दैदीप्यमान रत्नाभूषण एवं पवित्र वस्त्र प्रदान किये 80 जब भगवान को वैराग्य हुआ तब पञ्चम स्वर्ग में निवास करने वाले देवेन्द्र वाराणसी आए और भगवान की स्तुति की, तीर्थों के जल से उनका अभिषेक किया और वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया। शक्र ने मणियों से जटित एवं सुवर्ण निर्मित एक यान निर्मित किया। उस पर चढ़कर 'पार्श्व' अहिच्छानगर गए और वन में पहुँचकर दीक्षा ली।82 उन्होंने अपने मस्तक के केशों का लुंचन किया। जिन्हें इन्द्र ने क्षीरसागर में विसर्जित कर दिया। जब पार्श्वनाथ तप कर रहेथे तो कमठ नामक एक देश जो अपनी भार्या सहित आकाशमार्ग से जा रहा था, अचानक विमान रुकने पर वहाँ आया और विमान के रुकने का कारण पार्थ को ही समझकर उन पर भयंकर उपसर्ग प्रारम्भ कर दिया। उसी समय असुरेश्वर का आसन कम्पायमान हुआ। जब उसे पार्श्वप्रभु पर उपस्थित उपसर्ग का ज्ञान हुआ तो उसके निवारण के लिए वह वहाँ आया और कमलासन की रचना कर उस पर पार्श्वप्रभु को विराजमान कर दिया। पदमावती ने उनके सिर पर छत्र तान दिया। पावप्रभु अपनी तपस्या से च्युत नहीं हुए। उन्हें कैवल्य की उपलब्धि हो गयी 83 77 पासणाहचरित 2:12 78 वहीं 2:12 79 सहो 2:13 80 वहीं 2/14 8] वहीं 326 82 वही 1 83 वही चौथी सन्धि pesastessessiesdesses 118 desxsesxsxesesexesy
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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