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________________ 'लोहा गलाकर भर देते हैं, उनसे शरीर गल जाता है, किन्तु फिर क्षणमात्र में उसी प्रकार मिल जाता है, जिस प्रकार पारे के बिन्दु निरन्तर संघटित हो जाते हैं। क्षेत्र की विशेषता के कारण ई * को ज. नाक उदों के द्वारा उनका दमन किया जाता है उनको धगधगाते हुए अङ्गारों के समान लोह स्तम्भों का आलिङ्गन कराकर वे कहते हैं कि- रे दुष्ट. तूने पूर्वकाल में छल से परस्त्री का आलिंगन किया था। अन्य दूसरे शामलि वृक्ष लाकर तृण अथवा वृक्ष डालियों के समान शरीर एवं सिर तहस-नहस कर डालते है। यदि वहाँ से वह किसी प्रकार छूट भी जाता है तो वह तीव्र प्यास से घुटने लगता है। फिर उनके सिर पर हथौड़ों के प्रहार से आघात करते है और उन्हें तस तेल के कड़ाहों में डाल देते हैं। वहाँ उन्हें कुम्भीचाक में पकाए जाने के समान जलन के दुख होते हैं और फिर स्पशनि दाह के। मद्यपान करने वाले व्यक्ति को कारणिक अवस्था का चित्रण करते हुए महाकवि रइधू कहते हैं : मजपाणेण मत्ती भर्म तो जरो लजणिमुक्क कोरइ अकजंतरो। णारिंगल बाहँ घल्लेवि बोल्लावाए माय बहिणी ति जपेह जं भावए । भज पेच्छेवि वंदेइ माए ति सा घुम्ममाणो चलंतो वलंतो रसा : मग मझम्मि लोट्टेइ उत्ताणउ को वि ढुक्केइ आसणगुणो माणउ । मुत्तए साणु वत्तम्मि रंधे तुरं मण्ण्णए तं पि सोवण्ण रस णिब्भरं । देहि देही ति जपेई मज्ज इम मित्त कल्पण पीऊसपाणोवमं । सीसु सव्वाहै पावेइ जपंतर गायमाणो चि हिंडेइ कपंत। 5/10 मद्यपान से उन्मत व्यक्ति भटकता फिरता है। लज्जा छोड़कर वह नीच कार्य करने लगता है। स्त्री के गले में बाँहं डालकर उसे बुलाता है और माता अथवा बहिन (आदि) जो मन में आता है। वही कहकर पुकारता है और भोगता है। भार्या को देखकर "मां" इस प्रकार कहकर (उसे) प्रणाम करता है। सुरा रसपान के कारण चक्कर काटता हुआ लड़खड़ाकर चलता एवं बल खाता हुआ वह मार्ग के मध्य में ऊपर मुख किए हुए लेट जाता है। कोई भी सम्मान के साथ उसके पास नहीं दूंवत्तः। श्वान उसके मुँह में शीघ्र ही पेशाब कर देता है, किन्तु वह उसको भी श्रेष्ठ सुवर्णरस समझ होता है और हे मित्र! कल्याणकारी अमृतपान के समान यह मदिरा (मुझे) और दो, और दो, इस प्रकार कहता है। Pascussiesasasterases 110 PSIKSIXSIASXSYSTester
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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