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________________ सूर्य और चन्द्रमा की एकत्र उपस्थिति मनोहर लगती है जब जिनेन्द्र को इन्द्र ने कुण्डल युगल से मण्डित किया तो मानो सूर्य एवं चन्द्रमा हो वहाँ जाकर शरण में बैठ गए थे। ___जिस प्रकार अपने परिकर के साथ इन्द्र सभाभवन में सुशोभित होता है, उसी प्रकार उत्सम देवों और मनुष्यों के मध्य सभा में जिनवर सुशोभित हो रहे थे। ____ पापी कमठ का कवि ने इस प्रकार वर्णन किया है, मानो सर्वत्र उसे धिक्कारा गया हो। वन में प्रविष्ट कमठ हाथी के मद से सिक्त वन को देखता है, मानो वह कमठ के पाप से लिप्त हो गया है। उसे देखकर सिंह गर्जना करते हैं, मानो वे भी उसके परस्त्रीगमन के विरोधी हैं। घोणियाँ उसे देखकर अपने बिलों में प्रवेश करने लगती हैं, मानो वे भी उसका मुखदर्शन नहीं करना चाहतीं। यथार्थ में बुरे व्यक्ति को लोग देखना भी पसन्द नहीं करते हैं। वहाँ के काले भ्रमर शब्द कर रहे थे मानो उसके दुर्गुणों की निन्दा ही कर रहे थे। प्रभंकरी रानी से उत्पन्न पुत्र का वर्णन करता दुआ कवि कहता है कि मानो चन्द्रमा में से कलङ्करहित प्रतिचन्द्र हो उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार सर्वत्र कवि की कल्पनायें बड़ी मामिक बन पड़ी हैं। उपमा प्रयोग स्पष्ट रूप से वैचित्र्य जनक साम्य को उपमा कहते हैं। पासणाहचरिउ में रइथू का उपम प्रयोग दृष्टव्य है। कुछ उपमायें नीचे दी जा रही हैं : उस (स्वर्ण रेखा) नदी से वह गोपाचल उसी प्रकार सुशोभित होता है, जिस प्रकार भार्या से कोई दक्ष पति सुशोभित होता है।34। ___ गोपाचल में कुल रूपी श्री के लिए राजहंस के समान, गुण रूपी रनों के लिए सागर के समान, खल कुल के लिए प्रलयकाल के समान, गोरक्षण विधि के लिए नवीन वृषभ के समान, पर्वतान्त के शत्रुनुपति रूपी गजों के दलन करने के लिए सिंह के समान तथा कुबेर के समान प्रचुर धन का धनी डोंगरेन्द्र नाम से सुप्रसिद्ध (एक) राजा हुआ 35 34 ताइ वि सोहि गोपायलक्खु गं भज समाणउँ णाहु दक्खु। 1/3 35 पासणाहचरित 14 Kesrespesasrespesesxe 102 desesxeshasexesxesxesy
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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