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________________ वर्षाकाल में पानी की फुहार अच्छी लगती है, पानी के स्थान पर दूध हो तो उसके सौन्दर्य का कहना ही क्या। वामादेवी के ऊपर पड़ता हुआ क्षीरसागर का जल ऐसा सुशोभित होता था मानो दुग्ध की वर्षा कर रहा हो। प्रकाश की पीली-पीली रेखायें सभी को मनोहारी लगती हैं। जब गर्भ नो मास का पूर्ण हो गया, तब वामादेवी का पीत मुख वैसा ही सुशोभित हो रहा था. मानो उस गर्भ के यश का पकान दी हो। जिनेन्द्र भगवान के जन्म के उपमानों की कवि ने झड़ी लगा दी है। चिन्ता मणि रत्न की यह विशेषता होती है कि उसके सामने जिस भी वस्तु का चिन्तन किया जाय, वह वस्तु सामने आ उपस्थित होती है इसी प्रकार लोगों के लिए पार्श्व का जन्म मानो चिन्तामणि रत्न की उत्पत्ति था। सभी अपने-अपने यश की अधिकाधिक वृद्धि की कामना करते हैं। यदि सारा यश किसी व्यक्ति में एकत्रित हो जाय तो उससे अधिक सौभाग्यशाली और कौन होगा? पार्श्व की उत्पत्ति संसार के लिए वैसी ही थी जैसे यश का पुंज ही एक स्थान पर एकत्रित हो गया हो। चाँदनी रात्रि में पूर्णचन्द्रमा का उदय सभी को जिस प्रकार सुखदायी होता है, उसी प्रकार भगवान पार्श्व की उत्पत्ति सभी को सुखदायी थी। कुरुभूमि में उत्पन्न कल्पवृक्ष से सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं। पार्श्व के अवतरण से संसारी जीवों की बहुत बड़ी कामनापूर्ण हो गयी अत: उनकी उत्पत्ति ऐसी थी मानो कल्पवृक्ष का अङ्कुर ही उत्पन्न हो गया हो। __जिस प्रकार कमलों का आकर सरोवर सूर्य के उदय होते ही खिल जाता है। उसी प्रकार जिननाथ के अवतरण से सभी व्यक्ति प्रफुल्लित हो उठे। आकाश में सूर्य और चन्द्रमा का परिभ्रमण शोभादायक होता हैं। इसी प्रकार क्षीरसागर से भरे हुए कलश भी शोभादायक होकर चन्द्र और सूर्य के परिभ्रमण का स्मरण दिला रहे थे। चन्दन सभी के सन्ताप को हरता है। शक्रराज ने जिनराज की चन्दन से चर्चा (पूजा) की मानो भविष्य में होने वाली तीव्रताप से अपने को दूर किया। ____ कामदेव का अस्त्र पुष्पवाण कहलाता है। इन्द्र ने पुष्पमाला लेकर भगवान के पादमूल में स्थापित की। मानो वह कामदेव के वाण से ही भगवान के चरणों की पूजा कर रहा था। जिस प्रकार एकत्रित हुई नक्षत्र राजि सुशोभित होती है, उसी प्रकार निर्मल शालि बीजों की देरियाँ सुशोभित हो रही थीं।
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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