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जिनसेन, वादिराज सूरि, भट्टारक सकलकीर्ति, पं. भूधरदास प्रभृति अनेक दिगम्बर मनीषियों और अनेक श्वेताम्बर परम्परा के आचार्यों ने संस्कृत में उनके चरित्र का गणगान किया है। उन पर प्राकत, अपभ्रंश, हिन्दी तथा अनेक भारतीय भाषाओं में चरित वाप्य और भक्तिरस से ओत- प्रांत मुक्तक रचनायें लिखी गयी, जिनकी चर्चा डॉ. जयकुमार जैन ने अपने शोध प्रबन्ध 'पार्श्वनाथचरित का समीक्षात्मक अध्ययन' में की है। ___महाकवि रइधू ने 'पासणाहरित' नाम से अपभ्रंश में संक्षिप्त किन्तु सरस
और मनोहर काव्य लिखा। जिसका योग्यतापूर्ण सम्पादन और हिन्दी अनुवाद कर श्री डॉ. राजाराम जैन, आरानिवासी ने 'रइधु ग्रन्थावली' के प्रथम भाग के अन्तर्गत प्रकाशित कराया। अनुज डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन ने रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से हिन्दी विषय में जब पी.एच.डी. करने की इच्छा व्यक्त की तो मैंने उन्हें रइधकृत 'पासणाहचरिउ' पर शोधकार्य करने की प्रेरणा दी। उन्होंने मेरे सुझाव को मानकर कार्य प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप उन्होंने 'पासणाहचरिउ : एक समीक्षात्मक अध्ययन' ग्रन्थ रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया, जिस पर उन्हें पी.एच.डी. उपाधि से विभूषित किया गया। कार्य कैसा हुआ है? इसका निर्णय तो सुधी पाठक स्वयं करेंगे, किन्तु मैं इतना अवश्य कहता हूँ कि अपभ्रंश भाषा और साहित्य पर कार्य करने वाले विद्वान उँगलियों पर ही गिनने लायक हैं, इनमें भी अपभ्रंश के अधिकारी विद्वान् तो दो चार ही हैं। ऐसी स्थिति में भाई सुरेन्द्र कुमार जैन का यह सत्प्रयास एक साहस ही है। अपनी योग्यता तथा बड़े जनों के अनुभवों का लाभ लेते हुए उन्होंने ग्रन्थ लिखने में पर्याप्त परिश्रम किया है, एतदर्थ उन्हें मेरा हार्दिक शुभाशीर्वाद है। उनके निर्देशक डॉ. प्रेमचन्द्र जैन (अध्यक्ष-हिन्दी विभाग, साहू जैन कॉलेज, नजीबाबाद (उ.प्र.) रहे हैं। जिनसे उन्हें पर्याप्त साहाय्य मिला है।
विद्वानों के लिए कल्पतरु परमपूज्य आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य अध्यात्मयोगी मुनिवर श्री १०८ सुधासागर जी महाराज, पूज्य शु. श्री गम्भीरसागर जी महाराज तथा प.क्ष. श्री धैर्यसागर जी महाराज के पावन आशीर्वाद से यह ग्रन्थ पाठकों के हाथों में सौंपते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। आशा है. इससे साहित्य जगत् लाभान्वित होगा। दशलक्षण पर्व १०.९.१९९७ ई.