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________________ अथवा दुखी, राजा या रंक, अकेला ही ब्राह्मण, शूद्र अथवा वणिक श्रेष्ठ बनता है। अकेला ही शुभाशुभ कर्मों को भोगता है, तो अकेला ही संसार में अपने को अनुजित करता है। यह जीव स्वयं ही कर्मों का कर्ता एवं उनका भोक्ता कहा गया है। मोहासक्त होकर अकेला ही घूमता भटकता रहता है। दर्परहित आत्मा बिल्कुल असहाय और अकेला होता है, कोई भी उसका सहायक नहीं होता। उपर्युक्त पद्य में आगत एक (अकेला) पद सर्वत्र व्याप्त होकर जीव के एकत्व का बोध कराता है। जहाँ परस्पर वातालाप का अवसर आता है, वहाँ छोटे-छोटे वाक्यों में भाषा सशक्त हो जाती है। सरलता और स्वच्छता के रहने पर भी वाक्यों में तीक्ष्णता वर्तमान है। यथा तहिँ रमइ जाम सुरणर गणितु ता तवसि एक पुणु तेण दिङ् । पंचग्गि-ताव-तावियठ गत्तु गउरी- पिययमि अणरत्तचित्तु। तरु एक्कु सुक्छ ज डहिउ पासि गउ पासु जिणेस तुहु सयासि । अण्णाण जणहिं पणविजमाण पेक्खेप्पिणु जंपइ तासु णाणु । किं मिच्छाइट्ठिहु करइ भत्ति जो णवि फेडइ संसार-अत्ति । तं सुणि कोविउ कमठक्खु दुट्ठु भो णरवर किंजंपहि अणिछु । किं अण्णाणत्तणु अम्ह जाउ कि परु णिंदहि तुहुँ गरुउ राउ । तं सुणि तिलोयवइणा पउत्तु तुव गुरु मरेवि कहि कत्थ पतु । तं वयण सुणिवि आरत्त चक्खु पडिजंपइ को जाणइ पयक्षु। अह पुणु दीसहि गाणेण दक्खु जइ जाणहि ता तुहु एत्थ अक्नु । ता णाहु भणइ इहु हु सदप्पु तरु कोट्टर तुव गुरु मरिवि सप्पु । किं डज्झमाणु णउ णियहि मुक्ख तरु फाडिवि जोवहि भो पयक्ख । तं णिसुणिवि ता आरटु घिट्छु जो हुंतउ महु गुरु गुणगरिछ। किह उरउ जाउ तणु तवेण खीणु पंचग्गिसहणि जो णिरु पवीणु । 3/12 । सुरनरप्रिय पाचं जब वहाँ रमण कर रहे थे तो उन्होंने (वहाँ) एक तापस को देखा, जिसका गांव पश्चाग्नि तप से तप्त था और चित्त शङकर में अनुरक्त था और जो एक सूखे वृक्ष को अपने पास में जला रहा था। पाश्वजिनेश्वर उसके समीप गए। अज्ञानी जनों द्वारा नमस्कृत उस तापस को देखकर सम्यग्ज्ञानी पार्श्वजिन बोले जो स्वयं ही संसार के दु:ख को नष्ट नहीं कर सकता, उस मिथ्यादृष्टि की भक्ति क्यों करते हो? यह सुनकर कमठ नामक दुष्ट तापस कुद्ध RASWASICSXSIXSXSXesxesdesi ao kesxesiaSISXSResesiess
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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