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________________ १० पार्श्वनाथचरित कोष, १५. नेमिजिन चरित्र, १६, कर्मविपाक, १७. तत्वार्थसार दीपक, १८. सिद्धान्तसार दीपक, १९, आगममार, २०. परमात्मराज स्तोत्र, २१. सारचतुर्विंशतिका, २२. श्रीपाल चरित्र, २३. जम्बूस्वामी चरित्र, २४. द्वादशानुप्रेक्षा। पूजा ग्रन्थ : २५. अष्टाहिका पूजा, २६. सोलहकारण पूजा, २७. गणधरवलय पूजा, राजस्थानो सांतयों १. आराधना प्रतिबोधसार, २, नेमीश्वर गीत, ३. मुक्तावलि गीत, ४. णमोकार फल गीत, ५. सोलहकारण राम, ६. सारसिखामणि रास, ७. शान्तिनाथ फागु। उक्त कृतियों के अतिरिक्त अभी और भी रचनाएँ हो सकती हैं जिनकी अभी खोज होना बाकी हैं। भट्टारक सकलकीर्ति की संस्कृत भाषा के समान राजस्थानी भाषा में भी कोई बड़ी रचना मिलनी चाहिए, क्योंकि इनके प्रमुख शिष्य ब्र० जिनदास ने इन्हीं की प्रेरणा एवं उपदेश से राजस्थानी भाषा में ५० से भी अधिक रचनाएं निबद्ध की हैं। उक्त संस्कृत कृतियों के अतिरिक्त पंचपरमेष्ठि पूजा, द्वादशानुप्रेक्षा एवं सारचतुर्विशतिका आदि और भी कृतियाँ हैं जो राजस्थान के शास्त्र भंडारों में उपलब्ध होती हैं। ये सभी कृतियाँ जैन समाज में लोकप्रिय रही हैं तथा उनका पठन-पाठन भी खूब रहा है। भट्टारक सकलकीर्ति की उक्त संस्कृत रचनाओं में कवि का पाण्डित्य स्पष्ट रूप से झलकता है। उनके काव्यों में उसी तरह की शैली, अलंकार, रस एवं छन्दों की परियोजना उपलब्ध होती है जो अन्य भारतीय संस्कृत काव्यों में मिलती है । उनके चरित काव्यों के पढ़ने से अच्छा रसास्वादन मिलता है । चरित काव्यों के नायक वेसठशलाका के लोकोत्तर महापुरुष हैं जो अतिशय पुण्यवान हैं, जिनका सम्पूर्ण जीवन अत्यधिक पावन है । सभी काव्य शान्तरस पर्यवसानी है। काव्य ज्ञान के समान भट्टारक सकलकीर्ति जैन सिद्धान्त के महान् वेत्ता थे। उनका मूलाचार प्रदीप, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, सिद्धान्तसार दीपक एवं तत्त्वार्थसार दीपक तथा कर्मविपाक जैसी रचनाएँ उनके अगाध ज्ञान के परिचायक हैं। इसमें जैन सिद्धान्त, आचार-शास्त्र एवं तत्वचर्चा के उन गृह रहस्यों का निचोड़ है जो एक महान विद्वान् अपनी रचनाओं में भर सकता है । इसी तरह सद्भाषितावलि उनके सर्वागज्ञान का प्रतीक है-जिसमें सकलकीर्ति ने जगत के प्राणियों को सुन्दर शिक्षाएं भी प्रदान की हैं, जिससे वे अपना आत्म-कल्याण करने की ओर अग्रसर हो सके। वास्तव में वे सभी विषयों के पारगामी विद्वान् थे। राजस्थानी रचनाएँ सकलकीर्ति ने हिन्दी में बहुत ही कम रचना निबद्ध की है । इसका प्रमुख कारण सम्भवतः इनका संस्कृत भाषा की ओर अत्यधिक प्रेम था । इसके अतिरिक्त जो भी इनकी हिन्दी रचनाएं मिली हैं वे सभी लघु रचनाएँ हैं जो केवल भाषा अध्ययन की दृष्टि से ही उल्लेखनीय कही जा सकती हैं । सकलकीर्ति का अधिकांश जीवन राजस्थान में व्यतीत हुआ था। इनकी रचनाओं में राजस्थानी भाषा की स्पष्ट छाप दिखलाई देती है । इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति ने संस्कृत भाषा में ३० ग्रन्थों की रचना करके माँ भारती की
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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