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________________ ३१४ ] • पो पानावपरित . अनुष्टुप् पञ्चाशदधिका-येनाष्टाविंशतिशतान्यपि । प्रलोकसंख्याश्च विशेया सर्वप्रथस्य लेखकै : ।।१०।। इति भट्टारकीसकलकीतिविरचिते पार्वनामचरित्रे श्री पार्श्वनाथ मोभगमन वर्णनो नाम त्रयोविंशतितमः सर्गः ।। २३ ।। को प्राप्त कराने वाले रत्नत्रय में मेरी विशुद्धि करें। भावार्थ-इन सबके प्रसाव से मेरा रत्नत्रय निर्दोष हो ॥६॥ लेखकों द्वारा इस सम्पूर्ण प्रन्य के श्लोकों की संख्या अठ्ठाईस सौ पचास २८५० जानने योग्य है ।।१००॥ . इस प्रकार भट्टारकाधीसकलकति द्वारा विरचित पार्श्वनाथचरित में श्रीपार्श्वनाथ भगवान के मोक्षगमन का वर्णन करने वाला तेईसवा सर्ग समाप्त हुमा ।।२।। AA
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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