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________________ ३१. ] • श्री पार्श्वनाथ रित FEmता ये निहत्य बहुधा विधिजान स्वाङ्गमेव सपसा परिजग्मुः । लोकादिर शाहपुर: पाते दिशामुक मोसमा हाड1:1८३॥ बसन्ततिलका ये ह्याचरन्ति विमल खलू पञ्चभेदमाचारमत्र निपुणा: स्वयमात्मशक्त्या। प्राचारयन्ति यमिना शिवकर्महेतो-वन्वे सदहिकमलान्यरतद्गुणोधः ये मंतरन्ति परधीहळपोलयुक्ता, ज्ञानार्णवं च सकसं लघु सारयन्ति । शिष्यान्मृवाक्यकिरणः शिवमन्दिराफ्य, शानाय यामि शरणं किस सत्कमान्जम् ॥६॥ साधरा प्रावृद्धकाल दमूले फारण जलनिश्चित : सुयोग पर ये हेमन्ते दिक्सुवस्त्रावृतढवपुषश्च स्वरेऽतीयमोसे । घी मे चोदयाभूते नकिरणचयः सुष्टु तप्ते शिला से मे यन्याः प्रदा वरशिवगतये साधवः स्वस्वशक्तिम् ॥८६॥ भरय मान्य स्तृत च त्रिभुवनपतिभिः सेक्षित मुक्तिकामै-- नित्यं सद्धर्मवीज वारणमनुपम दुःखसत्रस्तपु साम् । के तप के द्वारा कर्म समूह तथा स्वकीय शरीर को हो नष्ट कर लोक के अग्रभाग को प्राप्त हुए हैं उत्सम गुण रूपी प्राभूषणों से सहित वे सिद्ध परमेष्ठी इस जगत में मुझे मोक्ष प्रवान करें ॥३॥ लोकोत्तर सामथ्र्य से युक्त जो इस जगत में पांच प्रकार के निर्मल प्राचार का अपनी शक्ति द्वारा स्वयं प्राचरण करते हैं और मोक्ष प्राप्ति के लिए अन्य मुनियों को प्राचरण कराते हैं उन प्राचार्यों के चरण कमलों को मै उनके उत्कृष्ट गुण ममूह के कारण नमस्कार करता हूँ ॥४॥ उत्कृष्ट बुद्धि रूपी सुदृढ जहाज से युक्त जो समस्त ज्ञान रूपी सागर को शीघ्र ही तिर जाते हैं तथा उत्तम वचन रूपी किरणों के द्वारा जो शिष्यों को तिराते हैं मैं मोक्ष महल को प्राप्ति तथा ज्ञान के लिये उन उपाध्याय परमेष्ठी के चरण कमल को शरण को प्राप्त होता हूँ ॥ ८५ ॥ जिनका सुदृढ़ शरीर दिशा रूपी वस्त्रों से प्राकृत है ऐसे जो वर्षाकाल में सर्प तथा जल से व्याप्त वृक्ष के नीचे हेमन्त ऋतु में प्रत्यन्त शीतल चौराहे पर और ग्रीष्म ऋतु में पर्वत के प्रमभाग स्वरूप, सूर्य के किरण समूह से अच्छी तरह तपे हुये शिला के अग्रभाग पर उसम ध्यान धारण फरते थे वे बन्दनीय साधु परमेष्ठी मुझे मोक्ष रूपी उत्कृष्ट गति के लिये अपनी अपनी शक्ति प्रदान करें ।।६। जो मुक्ति के इच्छुक सीन लोक के स्वामियों के द्वारा पूज्य है, मान्य है, स्तुत है. सेवित है, निल है. सदर्भ का बीज है, दुःख से भयभीत मनुष्यों के लिये
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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