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________________ *योविंशतितम सर्ग. [ ३०७ यस्पूजनानिरूपमा परमा च लक्ष्मीः सौख्यं त्रिलोकजनितं च समीहितार्थः।। तद्भास्तिकवरसुदुर्लभसारसर्वः संलक्ष्यते तमिह नौमि समीहिताप्त्यै ।।७।। यदयानवज्ञहननात्काठना महान्तः पापाद्रयोऽसुखनगा: शतचूर्णताच । गच्छन्ति तद्गुरणसमूहसुरञ्जिताना कुर्वेऽनिशं स्वहदयेऽधविहान ये तम् ।।७।। शार्दूलविक्रीडितम् पाश्वो विघ्नविनाशको वृषजुषा पावं श्रिता धामिका: पार्वरणाशु विलभ्यतेऽखिलसुखे पापाय तस्मै नमः । पानास्त्यपरों हिताजनकः पापर्वस्य मुक्तिः प्रिया पाने चित्तमहं पधे जिनप मा सीघ्र स्पा नप 11७४। अम्बरा विचार्य विश्ववन्य गुणगणजलधि त्यक्तदोष महान्तं श्रीमन्तं लोकनायं प्रकटितसुवर्ष मुक्तिकान्तं जिनेन्द्रम् । में मङ्गलमय कार्य के प्रारम्भ में मोक्ष सम्बंधी विघ्नों को नष्ट करने के लिये उन्हीं पाईनाप भगवान को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता है ॥७१।। जिनका पूजन करने से उनके भक्तजन, निरुपम उत्कृष्ट लक्ष्मी, तीन लोक सम्बन्धी सुख, अभिलषित पदार्थ, और समस्त उस्कृष्ट दुर्लभ पदार्थों को प्राप्त होते हैं मैं यहां उन पाश्वनाथ भगवान की प्रभिलषित अर्थ की प्राप्ति के लिये स्तुति करता हूँ ॥७२॥ जिनके ध्यानरूपी वन के प्रहार से उनके गुण समूह में अनुरक्त भव्यजीवों के प्रत्यन्त कठिन विशाल पापरूपी पर्वत सपा बुःखरूपी वृक्ष शतपूर्णता-सो ट्रफपने को प्राप्त हो जाते हैं उन पार्श्वनाथ भगवान को पापों का नाश करने के लिये में निरन्तर अपने हृदय में धारण करता हूँ ॥७३॥ पार्श्वनाथ भगवान् धर्मात्मा जीवों के विघ्न को नष्ट करने वाले थे, धार्मिक लोग भगवान् पार्श्वनाथ को प्राप्त हुए थे, पार्श्वनाथ भगवान के द्वारा शीघ्र ही समस्त सुख प्राप्त होता है, उन पार्श्वनाथ भगवान के लिये नमस्कार हो, पार्श्वनाथ से बढ़ कर दूसरा हित को उत्पन्न करने वाला नहीं है, पार्श्वनाथ भगवान् को मुक्ति प्रिय थी, में पार्श्वनाथ जिनेन्द्र में अपना मन लगाता हूँ, हे जिनराम ! मुझे सीघ्र ही अपने निकट ले लो ॥ ४ ॥ जो सबके द्वारा पूज्य हैं, सबके द्वारा बन्दनीय हैं, गुण समूह के सागर हैं, दोषों से रहित है, महान हैं, श्रीमान हैं, लोक के स्वामी है। उत्तम धर्म को प्रकट करने वाले हैं, मुक्ति कान्ता के पति हैं, जिनेन्द्र हैं, धर्म भक्त जीवों के
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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