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• भी पारनाथ धरित . वारिद्रयमतिदीमत्वं स्वल्पजीवित्वमेव हि । कुरूपा कामिनी पुत्राः शत्रुतुल्याश्च बान्धवाः ।।६।। कुटुम्बं सकलं धर्मघ्नं विश्वाकर्मकारणम् । दुर्गती भ्रमणं नीचकुलत्वं यशो महत् ।।१।। इत्याचत्रा परं यच्च दृश्यते दुःखदायकम् । पापिना विधि सरकृत्स्नं पापारिवनितं महत् ।।११।। परिकभिभुवने निन् स्वानिष्टं दुःखकारणम् । पापचत्त रकस्य स्यात्तत्सर्व कदुकं फलम् ॥१२।। पापहेतोः परित्यागः सत्त्ववाधादिटालन:' । हितसत्यवचोभाषणैः परस्यादिवजन: ।।१३।। सर्वनायु परित्यागैः पञ्चेन्द्रियविनिग्रहः । प्रयत्नाचरणः सर्वेः कषायारिनिपातनः ॥१४॥ पर्मोपदेशकृताक्यः संवेगाकिसमानसः । स्थिरशाम्यभिश्च जिनेन्द्रगुरुसेवनैः ।१५॥ सामादिवशधर्मामानाचरणादिभिः ।सर्वसस्वहिताचार: सध्यान वनादिभिः ॥१६॥ इत्याचन्यशुभाचारमहापुण्यं सतां भुवि । उत्पद्यतेऽनिर्श विश्वं विश्व शर्मनिबन्धनम् ॥१७॥ कामिन्यः कमनीयानाः कामदेवनिभाः सुताः । बान्धवाः प्राणतुल्याश्च भृत्या दक्षा हितकराः।।१८।। सत्पुण्यप्रेरकं सर्व कुटुम्ब सुखसाधनम् । भोगोपभोगवस्तूनि श्रीधान्यादीन्यनेकशः ॥१६॥ समस्त प्रकायों का करने वाला होना, दुर्गति में भ्रमण करना, नोचकुल में उत्पन्न होना, बहुत भारी अपयश का प्राप्त होना और इन्हें प्रावि लेकर प्रम्य जो कुछ भी दुःखवायक सामग्री पापी जीवों के देखी जाती है वह सब महान् सामग्री पापरूपी शत्रु के द्वारा उत्पन्न की हुई जानो ॥७-१२॥ संसार में जो कुछ भी निन्दनीय, अपमे लिये प्रनिष्ट तया दुःख का कारण है वह सब पापरूपी धतूरे का कडबा फल है ॥१२॥
पाप के कारणों का परित्याग करने से, जीवों की बाधा प्रावि के दूर करमे से, हितकारी सत्य वचन बोलने से, पर स्त्री प्रावि को छोड़ने से, सब स्त्रियों तथा परिग्रह के स्याग से, पञ्चेन्द्रियों के निग्रह से, प्रयत्न पूर्वक समस्त प्राचरण करने से, कषायरूपी शत्रु का घात करने से, धर्मोपदेश को करने वाले बचन बोलने से, संवेग से युक्त मन से, स्थिर पौर शान्त शरीर रखने से, जिनेन्द्र वेव और गुरु को सेवा से, क्षमा मादि दशधर्म के प्रौ से, सम्यग्दर्शन सम्यम्मान और सम्यश्चारित्र प्रावि से, सब मोवों का हित करने वाले पाचार से, ध्यान सहित भावना प्रादि से तथा इन्हें प्रावि लेकर अन्य शुभ क्रियानों से पृथिवी पर सत्पुरुषों को निरन्तर बहुत भारी पुण्य उत्पन्न होता है । यह पुण्य समस्त सुखों का कारण है ॥१३-१७॥ सुन्दर शरीर की धारक स्त्रियां, कामदेव के समान पुत्र, प्राणों के समान भाई, चतुर और हितकारी सेयक, उत्तम युण्य कायों में प्रेरणा देने वाला सुक का साधन स्वरूप समस्त कुटुम्ब, लक्ष्मी तथा धन धान्यादि भोगोपभोग की अनेक वस्तुए, एकछत्र राज्य, रोगरहित सुन्दर शरीर, अमृतमयी दिल्यवारणी, पाण्डिस्य, निर्मल यश, १.दरीकरणैः २. ज्यामहितः ।