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________________ १४ ] * भी पार्श्वनाथ चरित मलिन दुरित हन्तारं सुकर्मक हेतु, जगति बुधशरण्यं विश्व 'कमंत्र मनम् । निहतकरणमारं बोधकं भव्यपुंसां, सकलविशदकीय संस्तुवे पार्श्वनाथम् ।।११७।। afa मट्टारक श्री सकलकीर्ति विरचिते भोपावं चरिते मरुभूति भव-वर्णनो नाम प्रथमः सर्गः । हो ! ऐसा जानकर कभी भी दुष्टजनों को संगति और सूढभाव को मत धारण करो ॥ ११६ ॥ जो समस्त पापों को नष्ट करने वाले हैं, समीचीन धर्म के श्रद्वितीय कारण हैं, जगत् में शानीजनों के शरणभूत हैं-रक्षक हैं, जिन्होंने समस्त कर्मों के समूह को नष्ट कर दिया है, इन्द्रियों तथा काम को मार भगाया है, जो भव्य पुरुषों को सम्यक् बोध के देने बाले हैं तथा सम्पूर्ण निर्मल कोति से युक्त हैं ऐसे पार्श्वनाथ भगवान की मैं अच्छी तरह स्तुति करता हूँ ।। ११७ इस प्रकार भट्टारक सक़त्लकीति द्वारा विरचित श्री पार्श्वनाथ चरित में मरभूति भब का बरपंत करने वाला प्रथम सगं समाप्त हुआ । १. गृहात २. नष्टेन्द्रियमं ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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