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________________ -------- - numan-on १२ ] * श्री पार्श्वनाथ चरित * राजा शत्रु विनिजित्यागतश्च बुबुधे जनात् । समस्त तदनाचारं मरुभूतिविशेषतः ॥६६ ।। मरुभूति नृपोनाक्षीत्कमठस्य दुरात्मनः । को दण्डो दीयतेऽत्रे' दृम्बिधान्यायविधायिनः ।।१०।। व्यामोहेमावदत्सोऽपि देवास्यान्यायकारिणः । वारेककृतदोषस्य दण्डं मा देह्यनुग्रहात् ।।१०१।। भूपोऽवादीत्करिष्यामि निग्रहार्हस्थ२ निग्रहम् । अस्य मा कुरु खेदं त्वं गृहं गच्छाशु नीतिवित् ।।१०२।। इत्यादिवचनस्त संबोथ्य प्रेष्य गृहं द्रुतम् । विधाय बहुधा दण्डं गर्दभारोहणादिजम् ।।१०३।। राशा निर्घाटित:पापी स्वदेशात्कमठोऽधमः । महत्पापं नृणामत्राहो दद्यादुःष्करं फलम् ।।१०४।। अथ गत्याशु भूताद्रो मानभङ्गास्कुतापस: । भूत्वा कत्तपो लग्नः स शिलोद्धरणाभिधम् ।। १०५।। मन्त्री तबुद्धिमाकर्ण्य राजानं प्रत्युवाच स: । देव कुर्वस्तपो ह्यास्ते कमठः कष्टकारणम् ।। १०६।। गत्वाहं तं विलोक्याश्वागच्छामि प्राह भूपतिः । किं रूपं तसपः सोऽवोचद्भौतिकतपो हि तत् ।।१०७। कमठ ने उसे देखकर भीतर कर लिया और राम पूर्ण चेष्टानों सहित अनेक प्रकार के वार्तालाप से उसका सेवन किया ॥६॥ ___ राजा प्ररविन्द शत्रु को जीत कर जब वापिस आया तब लोगों से उसने कमठ के सब अनाचारों को जाना तथा मरुभूति ने भी सब समाचार विशेष रूप से अवगत किया ॥६॥ राजा ने मरुभूति से पूछा कि यहां इस प्रकार का अन्याय करने करने वाले दुष्ट कमठ के लिये क्या सण्ड दिया जाय ? ॥१०॥ भ्रातृ स्नेह के कारण मरुभूति ने कहा कि हे देव ! यद्यपि यह अन्याय करने वाला है तथापि इसने एकबार ही अपराध किया है प्रतः कृपाकर इसे दण्ड न दीजिये ॥१०१॥ राजा ने कहा कि मैं निग्रह-दमन के योग्य इस कमठ का निग्रह-दमन अवश्य करूंगा । तुम स्वयं नीति को जानते हो, अतः खेब नहीं करो, शीघ्र ही घर जानो ॥१०२॥ इत्यावि वचनों से उसे समझा कर राजा ने शीघ्र ही घर मेज दिया और गधे पर चढ़ाना प्रादि नाना प्रकार का दण्ड देकर पापी-नीच कमठ को अपने देश से निकाल दिया। सो ठीक ही है क्योंकि महान पाप मनुष्यों को इसी लोक में कठिन फल दे देता है ॥१०३-१०४॥ तदनन्तर शीघ्र ही जाकर वह भूतादि नामक पर्वत पर मानभङ्ग के कारण खोटा तापसी हो गया और शिलोद्धरण नामक तप करने लगा अर्थात् दोनों हाथों से एक बड़ी शिला उठाकर तप करने लगा ॥१०५।। उसकी बुद्धि को सुनकर मंत्री मरुभूति ने राजा से कहा कि हे देव ! कमठ ऐसा तप करता हुआ स्थित है जो कि कष्ट का करण है ॥१०६॥ मैं उसे देखकर शीघ्र ही वापिस पा जाऊगा। राजा ने कहा कि उसका तप कैसा है ? मरभूति ने कहा कि वह तप निश्चित हो भौतिक तप है-कुतप है। राजा ने कहा-तब १.ईशान्यायकारिणः २.दण्डयोग्यस्य ३.दण्डम् ४.निष्कामितः ५.फठिन ६. बिलोप+प्राशु + मा.शामि. इनिच्छेद
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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