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________________ -वोडश सर्ग. [ २.१ षोडशः सर्गः श्रीमन्त त्यक्त रागादिदोषं लोकत्रयाचितम् । वैराग्यादिगुणापन्नं पाश्वनाथं नमाम्यहम् ॥१॥ अथ सारस्वता देवा प्रादित्या वह्नयोऽरुणा: । निर्जरा गर्दतोयाख्यास्तुषिता दिव्यमूर्तयः ।।२।। अध्यावाधा अरिष्टा: स्युरेते लोकान्तिकामराः । अष्टमा त्रिदर्शन्यिा ध्र वमेकावतारिणः ॥३|| 'विश्वपूर्वधराः सौम्या देवीरागादिवजिता: । जिननिःक्रान्तिकल्यारणशंसिनो मुक्तिकाक्षिणः।४। ब्रह्मलोकालयावासा: स्याता देवर्षयोऽमलाः । स्वावविज्ञानयोगेन शानिःक्रमणोत्सवाः ।।५।। पाजग्मुर्योतयन्तः रेवं स्वाङ्गभूषादिदीप्तिभिः । तत्र ते स्वनियोगाय निसर्गब्रह्मचारिणः ।।६।। तदंहिकमलो नत्वा पूर्धाम्यय॑ मनोहरौ । कल्पवृक्षप्रसूनागंर्भक्त्या संयमकारणः ॥७।। घचोऽमलमनोजस्ते तद्गुणग्रामशंसिभिः । भक्त्या प्रारेभिरे स्तोतु जिनवैराग्यवृद्धये ।।८।। षोडश शर्ग जो अनन्त चतुष्टय रूप अन्तरङ्ग और प्रष्टप्रातिहार्यरूप बहिरङ्ग लक्ष्मी से सहित हैं, जिनके रागादि दोष छुट गये हैं, जो तीनों लोकों के द्वारा पूजित हैं, तया वैराग्यादि गुरखों से संपन्न हैं उन पारर्वनाथ भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ प्रधानन्तर सारस्वत, प्राधिस्य, बलि, प्ररण, गर्दतोय, दिव्य शरीर के धारक तुषित, प्रधावाध और परिष्ट ये आठ प्रकार के लौकान्तिक देव, जो कि देवों के द्वारा मान्य हैं, नियम से एकभवावतारी हैं, समस्त पूर्यों के पाठी हैं, सौम्य है, देवी सम्बन्धी रागादि से रहित हैं, जिनेन्द्र भगवान के दीक्षा कल्याणक को सूचित करते हैं, मुक्ति के अभिलाषी हैं, ब्रह्मलोक-पञ्चम स्वर्ग के निवासी हैं, देवषि नाम से विख्यात हैं, निर्मल हैं, अपने अवधिजान के द्वारा जिन्होंने दीक्षा कल्याणक के उत्सव को जान लिया है, जो अपने शरीर तथा प्राभूषणादि को बीप्ति से प्राकाश को प्रकाशित कर रहे हैं तथा स्वभाव से ब्रह्मचारी हैं, अपना नियोग पूरा करने के लिये यहाँ प्रा पहुँचे ॥२-६॥ पाते ही साथ उन्होंने भगवान के मनोहर चरण कमलों को नमस्कार किया, संयम के कारणभूत कल्पवृक्ष के पुष्प मावि से भक्तिपूर्वक पूजा को और उसके पश्चात् वे भगवान के गुरणसमूह को सूचित करने वाले मनोहर निर्मल वचनों के द्वारा जिनेन्द्र देव के वैराग्य की वृद्धि के लिये भक्तिपूर्वक स्तुति करने को उद्यत हुए ॥७-८॥ १. चतुदंगपूर्वपराः २. गगनं ।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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