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* श्री पार्श्वनाथ चरित * दानिनो पार्मिकाः शूरा प्रतशोलादिमण्डिताः । जिनभक्ता: सदाचार न्यायमार्गरता बुधाः।।६२।। धर्मकर्मकरा दक्षा वसन्ति यत्र सत्कुलाः । पुरुषास्तत्समा नार्यों रूपलावण्यभूषिताः ॥६३॥ पतिस्तस्य महीपालोऽरविन्द: ख्यातिपुण्यवान् । धर्म्यमार्गरतो धीमानभवन्नोतितत्परः ॥६४।। पिप्रियुस्तं समाश्रित्य प्रजापतिमिव' प्रजा: । भूपं सर्वहितोद्य क्तं न्यायमार्गविशारदम् ॥६५॥ स्वयं करोति यो धर्म जिनोक्तं प्रत्यहं यदि । मन्येषा कारयत्येव कान्या तस्यात्र वर्शना ।।६।। तन्मन्त्री विश्वभूत्याख्यो ब्राह्मणोऽनेकशास्त्रवित् । ब्राह्मण्यनुन्धरी तस्य प्रीत्यै श्रुतिरिवाभवत् ।।६७।। पत्री तयोरभूता विषामृलोकाना गयो । कमठो मरुभूत्याख्यः पापपुण्यावियापरी ॥६८।। कमठस्य प्रिया जाता वरुणा वरलक्षरणा । भार्याभून्मरुभूतेश्च दिव्यरूपा वसुन्धरा ।।६।। दक्षः शास्त्रवि चारज्ञो नीतिविन्यापमार्गगः । मरुभूतिरभूल्लोके ख्यातो राजप्रियो महान् ।।७०।। हो रहा था मानों मुक्ति रूपी स्त्री की साधना के लिये इन्द्रों को बुला हो रहा था ॥१॥ जहां ऐसे पुरुष निवास करते थे जो दानी थे, धर्मात्मा थे, शूर वीर थे, व्रत शील प्रादि से सुशोभित थे, जिन भक्त थे, सदाचारी थे, न्याय मार्ग में रत थे, ज्ञानी थे, धार्मिक कार्यों को करने वाले थे, चतुर थे और उच्च कुलीन थे। पुरषों के समान वहां की स्त्रियां भी रूप तथा सौन्दर्य प्रावि से विभूषित थीं ॥६२-६३॥
___उस पोदमपुर का स्वामी राजा अरविन्द था । वह अरविन्द प्रसिद्धि और पुण्य से युक्त था, धर्म मार्ग में रत था, बुद्धिमान था और नीति में तत्पर था ॥६४॥ सब जीवों के हित करने में उद्यत तथा न्यायमार्ग में निपुण उस राजा को पाकर प्रजा ऐसी प्रसन्न यो मानों प्रजापति ब्रह्मा को ही प्राप्त हुई हो ॥६५॥ जो राजा स्वयं ही प्रतिदिन जिनेन्द्र कथित धर्म को पालन करता है और दूसरों को पालन कराता है उसका और क्या वर्णन किया जाय ? ॥६६॥
अनेक शास्त्रों को जानने वाला विश्वभूति नामका बाह्मरण उसका मन्त्री था। अनुम्बरी नामकी ब्राह्मणी विश्वभूति की स्त्री थी जो श्रुति के समान उसकी प्रीति को बढ़ाती रहती थी ॥६७। उन दोनों के कमठ और मरुभूति नाम के दो पुत्र हुए जो विष पौर अमृत की उपमा को प्राप्त थे अथवा दूसरे पाप और पुण्य के समान जान पड़ते थे। भावार्थ-कमठ विष प्रथवा पाप के समान था और मरुभूति अमृत अथवा पुण्य के समान था ॥६८।। उत्तम लक्षणों से सहित घरुणा कमठ को स्त्री हुई और सुन्दररूप को धारण करने वाली बसुन्धरा मरुभूति की स्त्री हुई ॥६६।।
__मरुभूति अत्यन्त चतुर था, शास्त्र के विचार को जानने वाला था, नीति का ज्ञाता था, और न्यायमार्ग पर चलने वाला था, इसलिये वह लोक में प्रत्यन्त प्रसिद्ध था और १.ब्रह्माणमिव २. गरलपीयूष सादृश्य कमसो विषोपमः मरुभूतिम्चामृततुल्यः ।