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* श्री पार्वनाप परित. समारोतयं कान्तं व्युत्सर्गाविक्षमं जिनः । जोऽतिकोमले रम्ये निरौपम्ये च निर्मले ।।३।। जिताम्बावस्म सत्पादो भेजतुर्न सरश्मिभिः। गिविताप्रमादाय मामिनः ।। इत्यादि परमा शोभा गावाला नखापतः । याभूदस्यात्र तां सर्वा विद्वान्को गदितु क्षमः १४१। पत्र वचमवास्थीनि चलयितानि । वनाराषभिन्नानि प्रभोः संहननं हि तत् ।।४।। न त्रिदोषोद्भवा पस्यातङ्का देहे 'व्यधुः पदम् । स्वप्नेऽपि जातु वा मान्ये पुद्गला दुःखहेतवे ।।३।। बपुः कान्तिसुनेपथ्यमरिणतेजश्चयः समम् । निसर्गनिर्मलाङ्गस्य लक्षणानि विरेजिरे ।।४।। श्रीवृक्षशङ्खपप्रस्वस्तिकाशप्रकीर्णकाः । सुतोरणं स्थित' छत्रं सिंहदिष्टरकेतने ।।५।। कुम्भी झषो तपा कूर्मश्चक्रमब्धिसरोवरम् । विभानं भवनं नागो नरो नारी मृगाधिपः ।।४।। वाणो वारणासमं गङ्गा देवराट् मेरुरेष हि । गोपुरं पुरमिन्द्रकों जात्यश्वस्तालवृन्तकम् ॥४॥ बीणा बेगुवङ्गरण सजी पट्टांशुकापरणौ । उद्यान फलितं क्षेत्र विचित्राभरणानि च ।।४।। सुशोभित हो रही थी मानों काम के शत्रु परमब्रह्मरूपी राजा का प्रलनीय घर हो हो ॥३८॥ पार जिनेन्द्र सुम्बार तथा कायोत्सर्ग प्रादि में समर्थ ऊर युगल को तथा अत्यन्त कोमल, मनोहर, अनुपम पौर निर्मल वो अङ्खामों को धारण कर रहे थे ॥३६॥ कमलों को जीतने वाले उनके उत्तम चरण नखकिरणों से ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानों अपने मापके वशल्प रखकर चन्द्रमा ही उनकी सेवा कर रहा हो ॥४०॥ इस प्रकार नल के अप्रभाग से लेकर केशों के अग्रभाग तक इनकी जो उत्कृष्ट शोभा थी उस सबको कहने के लिये कौन विद्वान समर्ष है? अर्थात् कोई नहीं ॥४२॥ जिसमें वन्नमय हड्डियां बन के बेष्टनों से वेष्टित तथा बच को कोलों से कीलित होती हैं ऐसा बनवृषभनाराच संहनम प्रभु का था।४। वात पिस और कफ इन तीन दोषों से उत्पन्न होने वाले रोगों ने उनके शरीर में पैर नहीं रख पाया था और न अन्य पुद्गल हो स्वप्न में भी कभी उनके छुःख के कारण हो सके पे ॥४३॥ इनके स्वभाव से निर्मल शरीर में शरीर को कान्ति तथा उत्तम मणियों को तेजोराशि के साथ निम्नास्ति लक्षरण सुशोभित हो रहे थे ॥४४॥
श्रीवृक्ष, शहा, पन, स्वस्तिक, अंकुश, चमर, उत्सम तोरण, सफेद छत्र, सिंहासन, पताका, कसरायुगल, मीन युगल, कच्छप, वक्र, सागर, सरोवर, विमान, भवन, नाग, नर, पारी, सिंह, वाण, धनुष, गङ्गा, इन्द्र, मेरु, गोपुर, पुर, चन्द्र, सूर्य, उत्तम जाति का अश्व, तालवृत्त, बोरगा, वेणु, मृवङ्गी मालायुगल, पाट का वस्त्र, बाजार, उद्यान, फला हुमा खेत, नाना प्रकार के प्राभरण, रस्नद्वीप, वन, पृथिवी, लक्ष्मी, सरस्वती, गाय, पृषभ, चूडारस्न, महानिषि, सुवर्ण कल्पलता, जम्बूवृक्ष, गरुड, चैत्पवृक्ष, भवन, नक्षत्र, तारा, ग्रह, दिव्य
१. रकुः २. सितं ग.।