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________________ १६४ ] * धो पाश्वनाथ चरित - मृदङ्गा दध्वनुश्चान्यस्तयोग्यबधिकोटिभिः । कलं गायन्ति गम्भस्तियोग्यं गीतसञ्चयम् ।।७।। प्रयुज्यामरराट् शुद्ध पूर्वरङ्ग मुदा क्रमात् । करण रङ्गहारविचित्रं प्रायुक्त तं पुन: ॥५६॥ रेचविविधैः पादकटीकण्ठकराश्रितः । ननाट नाटक शक्रो महान्तं दर्शयन् रमम् ।।१०।। तदा बाहुसहस्राणि विकृत्येन्द्रप्रनर्तन: । चरणन्याससंघातः स्फुटन्तीव मही चलेत् ।।१।। विक्षिप्तधाहुविक्षेपैः सभूषगंगने हरिः । कल्पवृक्ष इवानर्तीदर्शयन्प्राग्भवं सताम् ।।२।। एकरूपः सणाद्दिश्योऽनेकरूपः क्षणात्परः ।क्षणास्थूलः क्षणात्सूक्ष्मः क्षणादग्याम्नि मरणाद्भुषि कारणाहीतरः काय: मणाल्लघुतरोऽद्भुतः । क्षणाद् द्विबाहुमानरूपी क्षणाद् बहकरराकृितः ।८।। इति प्रतन्वतात्मीयं सामध्यं विक्रियोद्भवम् । इन्द्रजालामवेन्द्रण दर्शितं धीमतां तदा ।।८।। टुरप्सरसो भलु करशास्त्रासु सस्मिताः ।सलीलचूलतोरक्षेपरङ्गहारः सचारिभिः ।।८६।। वर्व मानलयः काश्चिदन्यास्ताण्डवलास्यकः । ननूतुर्देवनतश्विरभिनयस्तदा ॥७॥ काश्चिदरावती पण्डीमैन्द्रीबध्या सुराङ्गनाः । नेटू रम्यै: प्रवेशश्च नि:क्रम : सुनियन्त्रितैः ।।८।। ॥७॥ अपने योग्य प्रम्य बाजों के साथ मृदङ्ग शब्द कर रहे थे और गन्धर्व उसके योग्य मधुर गीत गा रहे थे ।।७८१ ले हर्ष मुनगुना हो सफाई का पश्चात् करण तथा अङ्गहारों से विचित्र माटक प्रारम्भ किया ॥७६।। पर कमर काठ तथा हाथों के प्राश्रय से होने वाले नाना प्रकार के रेषकों-वतुंलाकार भ्रमण से बहुतभारी रस को प्रकट करता हुमा इन्न नाटक का अभिनय कर रहा था ।।। उस समय विक्रिया से हमार भुजाएं बना कर इन्द्र मृत्य कर रहा था। मृत्य करते समय उसके पावविक्षेप के माधात से पृथिवी ऐसी कांपने लगी थी मानों फटी ही जा रही हो ॥१॥ प्राभूषणों से युक्त भुजाओं के विक्षेप से जो कल्पवृक्ष के समान जान पड़ता था ऐसा इन्द्र सरपुरुषों को भगवान के पूर्वभव विखलाता हुमा प्राकाश में नृत्य कर रहा था ।।२॥ इन्द्र का विम्य शरीर मरणभर में एक हो जाता था, भरणभर में अनेक हो जाता था, भरणभर में स्थूल हो जाता था, क्षणभर में सूक्ष्म हो जाता था, क्षणभर में प्राकाश में चलने लगता था, क्षणभर में पृथिवी पर मा जाता था, क्षणभर में प्रत्यन्त वीर्घ हो जाता था और भरणभर में प्रत्यात लघु बन जाता था, क्षणभर में दो हाथों से युक्त रूप धारण करता था और क्षणभर में अनेक हाथों से युक्त हो जाता था. इस प्रकार अपनी विक्रिया जन्य सामर्थ्य को विस्तृत करने वाले इन्द्र ने उस समय विद्वज्जनों के लिये मानों इन्द्रजाल ही दिखाया मा ।।८३-८॥ इन्द्र की अंगुलियों पर मन्द मुसक्यान से सहित अप्सराए लोला सहित भौहें चलाती हुई, शरीर मटकाती हुई तथा फिरकी लगाती हुई मत्य कर रही थीं ॥८६॥ कोई अन्य देवनतंकिया उस समय बड़ते हुए लय से युक्त ताण्डव नृत्य से तथा अन्य अनेक प्रकार के अभिनयों से नृत्य कर रही थीं ।।७।। कितनी ही देवाननाएं इन्द्राणी के साथ ऐरावत हाथी के शरीर में
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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