________________
* प्रयोदशम सर्ग
[ १५९
प्रतीक सुन्दरो नाथामण्डितस्त्वं विभूषणः । मण्डितो मण्डनीभूत केवलं मण्डनाय नः ॥२८।। मणिः शुद्धाकरोद्भूतो यथा संस्कारकर्मभिः । दीप्यतेऽधिकमेव त्वं जातकर्मादिसंस्कृतः ॥२६॥ प्रहनिष्यसि नाथ त्वं मोहमिथ्यादि धीमताम् । द्योतयिष्यसि स्वमुक्तिमार्गों दिव्यवचोंऽशुभिः।।३।। चतुर्शानधरा देव त्वां स्तोतु च क्षमा न हि । मुनयोऽति मत्यास्माभिः स्तुती न कृतः श्रमः।।३।। प्रतः पूतात्मने तुभ्यं नमस्ते गुणसिन्धवे । त्रिजगत्स्वामिने तुम्यं नमो भीतिभिदे सताम् ।।३२।। जगदालादिने तुभ्यं नमोऽस्तु गुरवे सताम् । नमस्ते निर्विकाराय सर्वातिशयशालिने ॥३३।। निःस्वेदाय नमस्तुभ्यं निसर्गनिर्मलाय ते । क्षीराच्छशोणिताङ्गाय चाद्यसस्थानमूर्तये ॥३४।। वज्रर्षभादिनाराचदृढसंहननाय च नमस्ते दिव्यरूपाय सुगन्धवपुषे नमः ॥३५॥ सर्वलक्षणपूर्णाय नमस्ते तीर्थकारिणे ।प्रप्रमाणसुवीर्याय वचःप्रियहितात्मने ॥३६॥
लिये किया गया है प्रापको पवित्र करने के लिये नहीं ॥२७॥ हे नाथ ! पाप तो आमूषरणों से विभूषित किये बिना ही अत्यन्त सुन्दर हैं फिर हे प्राभूषण स्वरूप ! प्राज जो प्रापको विभूषित किया गया है वह मात्र हम लोगों को विभूषित करने के लिये किया गया है ॥२८॥ जिस प्रकार शुद्ध बाद से उत्पना मा मणि मंकार क्रिया से अत्यधिक देदीप्यमान हो जाता है उसी प्रकार शुद्ध माता से उत्पन्न हुए पाप जातकर्म-जन्माभिषेक आदि से संस्कृत होकर अत्यधिक देदीप्यमान हो रहे हैं ॥२६॥ हे नाथ ! तुम बुद्धिमानों के मोह मिथ्यात्व प्रावि को नष्ट करोगे और दिव्यध्वनि रूप किरणों के द्वारा स्वर्ग तथा मोक्ष के मार्ग को प्रकाशित करोगे ॥३०॥ हे वेब ! हार शाम के धारक मुनि प्रापकी स्तुति करने में समर्थ नहीं हैं यह मान कर हमने प्रापकी स्तुति में भ्रम नहीं किया है ॥३१॥ जिस कारण प्राप पवित्रात्मा तथा गुणों के सागर हो इसलिये पापको नमस्कार हो । जिस कारण माप तीन जगत् के स्वामी और सत्पुरुषों के भय को नष्ट करने वाले हैं इसलिये प्रापको नमस्कार हो ॥३२॥ पाप जगत् को प्राल्लावित करने वाले हैं सपा सत्पुरुषों के गुरु है प्रतः प्रापको नमस्कार है। माप विकार से रहित तथा समस्त प्रतिपायों से शोभायमान है प्रतः प्रापको नमस्कार है ॥३३॥ माप पसीना से रहित हैं, स्वभाव से ही निर्मल है आपका शरीर दूध के समान सफेद रुधिर से सहित है और पाप समचतुरमा संस्थान के धारक हैं अतः प्रापको नमस्कार हो ॥३४॥ माप बकामनाराच नामक सुदृढ संहनन से युक्त हैं, दिव्यरूप के धारक हैं, तथा सुगन्धित शरीर से सहित हैं इसलिये प्रापको नमस्कार हो ॥३५॥ प्राप समस्त लक्षणों से पूर्ण हैं, तीर्थकर है, अतुल्य बल से सहित हैं तथा हित मित प्रिय वचन बोलने वाले हैं इसलिये प्रापको नमस्कार हो ॥३६॥ इस प्रकार आप जन्म के दश प्रतिशयों से सहित हैं प्रतः प्रापको नमस्कार हो । पाप अन्य